बांका का ज्येष्ठगौर नाथ मंदिर… जहां कर्ण की चिता जली और शिवलिंग ने त्रिदेव को समेटा

  • चांदन नदी के किनारे बसा ज्येष्ठगौर नाथ मंदिर सावन में बना आस्था का केंद्र

न्यूज स्कैन ब्यूरो। बांका

चांदन नदी के किनारे जेठौर पहाड़ की तलहटी में स्थित बाबा ज्येष्ठगौर नाथ महादेव मंदिर बांका जिले का प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर अमरपुर शहर से महज आठ किलोमीटर दूर है। मंदिर की खासियत एक मुखी शिवलिंग है, जो लक्ष्मीनारायण मंदिर में स्थापित है। यह शिवलिंग मंदिर के मुख्य गर्भगृह के उत्तर दिशा में स्थित है।

पुरातत्वविदों के अनुसार, यह शिवलिंग सदियों पुराना है। श्रद्धालु साल भर जलाभिषेक के लिए यहां आते हैं। सावन और शिवरात्रि के समय यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। अंग क्षेत्र का यह मंदिर शिव, शैव और शक्ति का अद्भुत संगम माना जाता है। मान्यता है कि यहां मांगी गई मुरादें पूरी होती हैं। कहा जाता है कि यह पृथ्वी का पहला शिवलिंग है, इसलिए इसे ज्येष्ठगौर नाथ कहा जाता है।

इतिहासकारों के अनुसार, करीब 1400 वर्ष पूर्व हर्षवर्धन के समकालीन शशांक गौर ने अपने राज्य में 108 शिवलिंगों की स्थापना कराई थी। इनमें जेठौरनाथ का शिवलिंग सबसे बड़ा माना जाता है। डीएन सिंह महाविद्यालय, रजौन के प्राचीन इतिहास विभाग के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष डॉ. प्रताप नारायण सिंह और प्रभारी प्राचार्य डॉ. जीवन प्रसाद सिंह ने बताया कि ऐसा ही शिवलिंग भागलपुर के शाहकुंड में भी मिला है। अंग दशाष्टक श्लोक में भी इन 108 शिवलिंगों का उल्लेख है।

जेठौरनाथ शिवलिंग तीन भागों में विभाजित

जेठौरनाथ शिवलिंग तीन भागों में विभाजित है। ऊपर भोग भाग, बीच में विष्णु पीठ और नीचे ब्रह्म पीठ। रूद्रभाग पर भगवान शिव का चेहरा उकेरा गया है। इस शिवलिंग में त्रिनेत्र नहीं दिखता, लेकिन जटाजूट, गले में ग्लाहार और कानों में कुंडल बने हैं, जो उस समय की शैली को दर्शाते हैं।

सूर्यपुत्र कर्ण ने भगवान श्रीकृष्ण से वचन लिया था कि उनकी चिता ऐसी जगह जलाई जाए

मंदिर के पूरब दिशा में बहती चांदन नदी के बीचोंबीच दानवीर कर्ण की चिताभूमि है। मान्यता है कि महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण ने भगवान श्रीकृष्ण से वचन लिया था कि उनकी चिता ऐसी जगह जलाई जाए जहां पहले कोई चिता न जली हो। श्रीकृष्ण ने उनका शव लेकर पूरी पृथ्वी का भ्रमण किया और चांदन नदी के मध्य में चिता जलाई। यह स्थान आज भी सुरक्षित है। 1995 की भीषण बाढ़ में भी यह स्थल नहीं डूबा था।

जेठौर पहाड़ पर मां दक्षिणेश्वर काली का मंदिर

मंदिर के पश्चिम-उत्तर दिशा में जेठौर पहाड़ पर मां दक्षिणेश्वर काली का मंदिर है। श्रद्धालु शिवलिंग के दर्शन के बाद चिताभूमि और मां काली के मंदिर में भी पूजा करते हैं। चांदन नदी के किनारे शिव मंदिर, नदी के मध्य में कर्ण की चिता और पहाड़ी पर मां काली का मंदिर इस क्षेत्र को धार्मिक दृष्टि से विशेष बनाते हैं।

इंग्लिश मोड़ और पुनसिया बाजार से मंदिर तक जाने के लिए ऑटो उपलब्ध

सावन में श्रद्धालु सुल्तानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा से जल भरकर पैदल या डाक बम कांवर लेकर यहां जलाभिषेक के लिए आते हैं। महाशिवरात्रि पर तीन दिन तक भव्य मेला लगता है। शिव बारात भी धूमधाम से निकाली जाती है। मंदिर तक पहुंचने के लिए बांका-अमरपुर मुख्य सड़क मार्ग पर इंग्लिश मोड़ से पूरब की ओर पांच किलोमीटर और भागलपुर-हंसडीहा मार्ग पर रजौन थाना क्षेत्र के पुनसिया बाजार से पश्चिम की ओर दस किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। इंग्लिश मोड़ और पुनसिया बाजार से मंदिर तक ऑटो और अन्य यात्री वाहन दिनभर उपलब्ध रहते हैं।