न्यूज स्कैन डेस्क, पटना
बिहार की राजनीति में चुनाव से ठीक पहले बयानों के तीर खूब चल रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जहां बिहार चुनाव के बहिष्कार का संकेत देकर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए तो वहीं अब विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के संयोजक मुकेश सहनी ने भी इसका खुला समर्थन कर दिया है। उन्होंने कहा है कि, “अगर चुनाव आयोग पक्षपात करेगा तो यह लोकतंत्र की हत्या है। इससे बेहतर है कि चुनाव ही न हो। तेजस्वी जो निर्णय लेंगे, VIP उनके साथ है।” यह बयान केवल प्रतिरोध नहीं है बल्कि गहराई से देखें तो रणनीतिक राजनीतिक पोजिशनिंग का भी संकेत है। विपक्ष इसी बहाने चुनावी अखाड़े से बाहर निकलकर पहले चुनाव आयोग की वैधता के सवाल को बहस के केंद्र में रखना चाहता है।

जानिए क्या कहा है सहनी ने और यह क्यों अहम
मुकेश सहनी ने दो परतों में बात रखी है। उन्होंने पहली बात तो यह कही है कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता सवालों के घेरे में है और दूसरी यह कि तेजस्वी की अगुवाई में विपक्ष एकजुट है। “लोकतंत्र की हत्या” जैसे शब्दों का इस्तेमाल बताता है कि विपक्ष फिलहाल मुद्दे को नैतिकता के एंगल से रखना चाह रहा है। इस मुद्दे पर विपक्ष टकराव की मुद्रा में भी नजर आ रहा है। वीआईपी का सामाजिक आधार निषाद, मछुआरा समेत कई ईबीसी तबका है। यह राजद की पारंपरिक एमवाई के आगे का विस्तार है। सामाजिक मोर्चे की सोच से मिले प्लेटफॉर्म का यह बृहद एंगल है।

तेजस्वी की रणनीति को अलग एंगल से देखिए
तेजस्वी यादव के बहिष्कार के संकेत को दो तरीकों से पढ़ा जा सकता है। पहला यह कि अगर विपक्ष चुनाव आयोग की मशीनरी को पक्षपात या द्वेष को साबित कर पाएगा तो तेजस्वी का सवाल और स्टैंड बरकरार रहेगा। लेकिन एक खतरा भी है। बहिष्कार की राह ताकतवर तभी होगी जब तमाम विपक्षी पार्टियां साथ आएं। आंशिक बहिष्कार रहा तो इतिहास गवाह है कि इससे आरोप लगाने वाली पार्टी का संगठनात्मक मनोबल और वोटर एंगेजमेंट को नुकसान ही होता है।
संवैधानिक बनाम राजनीतिक रणनीति
मुकेश सहनी ने कहा है कि, देश के गरीबों के पास वोट का अधिकार ही उनकी सबसे बड़ी दौलत है। इसी एप्रोच को ड्राइव करते हुए विपक्ष सोशल नैरेटिव बनाते हुए चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को एक मुद्दा बना सकता है। इसी माहौल को हवा देते हुए इसे एकजुट होकर जनांदोलन की तरह ड्राइव कर सकता है या फिर चुनाव आयोग के खिलाफ औपचारिक आपत्तियां दर्ज कराए और पर्यवेक्षक की मांग करे।
सहनी-तेजस्वी समीकरण का सामाजिक गणित
राजद और वीआईपी समीकरण का मतलब है कि मुस्लिम, यादव, निषाद और ईबीसी का एक्सपेंशनल मॉडल। यह पक्ष अगर मजबूत होता है तो यह सत्ता पक्ष यानी एनडीए के ईबीसी पॉकेट को निश्चित तौर पर कमजोर करेगा। अगर पिछले कुछ चुनावों का ट्रैक देखें तो ईबीसी एनडी की मजबूत राजनीतिक संपत्ति रहा है। सहनी की ये लाइन कि ‘हम तेजस्वी जो निर्णय लेंगे, उनके साथ’, तेजस्वी के नेतृत्व स्वीकार्यता और विपक्षी एकता का संकेत देती है। राजद के अंदर भी यह संदेश देता है कि तेजस्वी “स्टेटवाइड फेस” और विपक्षी राजनीति के डिसीजन सेंटर हैं।
सत्ता पक्ष यानी एनडीए का पलटवार
चुनाव बहिष्कार के बयानों के बीच एनडीए का यही स्टैंड नजर आ रहा है और होगा कि वह इस बात को कहे कि हार के डर से विपक्ष मैदान छोड़कर भाग रहा है। इसी वजह से विक्ष चुनाव आयोग पर हमला कर रहा है। जनता को एनडीए यही समझाने की कोशिश करेगा। चुनाव आयोग जैसी संस्था पर विपक्ष के हमले को संविधान पर हमला बताया जाएगा। विपक्ष के एेसे कदम को महज शिकायती राजनीति बताने की कोशिश एनडीए की तरफ से की जाएगी।