- एक नाटक जो दृश्य नहीं, संवेदना बनकर उतरा दर्शकों के मन में
भागलपुर । सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था “संबंध” ने अपनी रचनात्मक यात्रा के दस वर्षों को समर्पित करते हुए रविवार को भागलपुर के टाउन हॉल में नाट्य प्रस्तुति “डार्क लाइफ” का प्रभावशाली मंचन किया। एक ऐसा नाटक, जो दृश्य से अधिक अनुभूति बनकर दर्शकों की चेतना में उतरता गया।
यह केवल मंच पर खेला गया कोई नाटकीय क्षण नहीं था, बल्कि एक अंतर्यात्रा थी — उस अंधेरे की, जो समाज में नहीं, मनुष्य के भीतर बसता जा रहा है।


रंगकर्मी रितेश रंजन की दृष्टि से निकला प्रकाश
इस नाटक का निर्देशन किया भागलपुर के युवा और संवेदनशील रंग निर्देशक रितेश रंजन ने, जिन्होंने रंगमंच को सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि एक आत्मिक हस्तक्षेप के रूप में बरता है। रितेश का रंग-संस्कार भारतेंदु नाट्य अकादमी, सत्यजीत रे फिल्म संस्थान और मिथिला विश्वविद्यालय की बुनियाद पर खड़ा है, जो इस प्रस्तुति में स्पष्ट झलकता है।


कहानी जो भीतर उतरती है
“डार्क लाइफ” की कथा हमें आज के उस आदमी के पास ले जाती है, जो चमकती दुनिया में अपने ही अस्तित्व से कट चुका है। जो रोशनी में खड़ा है, पर भीतर अंधेरे की दरारें गहराती जा रही हैं। यह नाटक उसी मौन पुकार को स्वर देता है, जिसे हम अक्सर सुनना नहीं चाहते।


कलाकारों का आत्मविसर्जन
सुमित कुमार मिश्रा, शशिकांत, आयुष चंद्र झा, श्रेया, उमा भारती, प्रेम सागर, सूर्यांश साकेत, सानू कुमार और आशीष कुमार जैसे युवा रंगकर्मियों ने मंच को मंच नहीं, जीवन का आईना बना दिया। उनकी प्रस्तुति में नाटकीयता नहीं, यथार्थ की चुभन थी।


तकनीक और सौंदर्य का मेल
- प्रकाश: विनय कुमार, रितिक राय
- संगीत: सुमित कुमार मिश्रा
- वस्त्र और मंच: उमा भारती, प्रेम सागर
- प्रबंधन और प्रचार: संजीव दीपू, मिथिलेश, नितिन अनिमेष, सूर्यांश साकेत व अन्य


दर्शक नहीं, साक्षी बने लोग
कार्यक्रम में उपस्थित रहे गणमान्य — इं. अंशु सिंह, शिक्षाविद राजीव कांत मिश्रा, आनंद चौधरी, डॉ. चंद्रेश, के के सिंह, प्रवीर, आशुतोष राय सहित कई सजग दर्शकों ने इस प्रस्तुति को “भागलपुर की सांस्कृतिक चेतना में एक नई लौ कहा।


डार्क लाइफ” कोई मंचन नहीं था — यह एक प्रश्न था, जिसे हर दर्शक अपने भीतर लेकर लौटा।
संस्था “संबंध” ने दिखा दिया कि जब कला प्रतिबद्ध होती है, तो वह समाज को झकझोर भी सकती है और जोड़ भी सकती है।





