हदीस-ए-नबवी की सबसे विश्वसनीय किताब है बुखारी शरीफ : सैयद शाह फख़र आलम हसन

  • उज़्बेकिस्तान की यात्रा – एक आध्यात्मिक अनुभव
  • खानकाह पीर दमड़िया शाह के सज्जादा नशीन मौलाना सैयद शाह फख़र आलम हसन

न्यूज स्कैन रिपाेर्टर, भागलपुर

अल्लाह तआला के फज़ल व करम से पिछले हफ्ते मुझे ख़ुरासान और मावरा-उन-नहर की उस पवित्र सरज़मीन की ज़ियारत का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जो इल्म व रूहानियत का केंद्र रही है। यही वह मुक़द्दस इलाक़ा है जहाँ समय के महान इमामों, मुहद्दीसों, फुकहा और आरीफ़ों ने अपने ज्ञान और तक़वा के चिराग़ रोशन किए। इसी यात्रा के दौरान मुझे “समरकंद” के क़रीब स्थित “खरतंग” की पवित्र भूमि पर हज़रत इमाम मोहम्मद बिन इस्माईल बुखारी रहमतुल्लाह अलैह के मुबारक केंद्र पर हाज़िरी का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

खानकाह पीर दमड़िया शाह के सज्जादा नशीन मौलाना सैयद शाह फख़र आलम हसन ने बताया कि हज़रत इमाम बुखारी रह० का रौज़ा मुबारक एक महान आध्यात्मिक केंद्र है। इसके पास ही उज़्बेकिस्तान सरकार की निगरानी में एक भव्य मस्जिद “मस्जिद इमाम बुखारी रह०” का निर्माण अपने अंतिम चरण में है। यह मस्जिद न केवल वास्तुकला का शानदार नमूना है बल्कि इसकी विशालता और सुंदर व्यवस्था दिल को मंत्रमुग्ध कर देती है। इस मस्जिद में एक साथ दस हज़ार नमाज़ी नमाज़ अदा कर सकते हैं, जबकि मस्जिद के आसपास लगभग तीन सौ एकड़ में फैले क्षेत्र में ज़ायरीनों के लिए ठहरने और अन्य सुविधाओं की बेहतरीन व्यवस्था की गई है।

इसी परिसर में एक शोध केंद्र भी स्थापित है, जहाँ इमाम बुखारी रह० की इल्मी सेवाओं पर शोध कार्य किया जा रहा है। छात्रों के लिए रहने और पढ़ने की भी उत्तम व्यवस्था की गई है। इमाम बुखारी म्यूज़ियम की ज़ियारत भी मेरे लिए एक रूहानी अनुभव था, जहाँ बुखारी शरीफ के पुराने और दुर्लभ नुस्ख़े, ऐतिहासिक पांडुलिपियाँ और एक नायाब मुसहफ़-ए-उस्मानी (कुरआन का प्राचीन हस्तलिखित संस्करण) भी संरक्षित है। मुझे इस पवित्र नुस्ख़े की ज़ियारत करने का सौभाग्य मिला और दिल की गहराइयों से दुआएँ माँगीं।

इसी परिसर में इल्म-ए-दीन और इलाहियात का एक उत्कृष्ट शिक्षण संस्थान भी है, जिसकी लाइब्रेरी, शिक्षक और शिक्षण व्यवस्था को देखकर दिल को अत्यंत प्रसन्नता और संतोष मिला। मस्जिद और शिक्षण संस्थानों के चारों ओर के खूबसूरत बाग़-बग़ीचे, सलीके से लगाए गए पेड़-पौधे, हरे-भरे लॉन और आत्मा को ताज़गी देने वाले दृश्य इस्लाम के सफ़ाई, हरियाली और व्यवस्थापन के उसूलों का बेहतरीन उदाहरण हैं। इस पूरे माहौल में ऐसी रूहानी खिंचाव महसूस होती है कि दिल चाहता है यहीं रुक जाऊँ और इस फज़ा से आध्यात्मिक लाभ उठाता रहूँ।

खानकाह पीर दमड़िया शाह के सज्जादा नशीन मौलाना सैयद शाह फख़र आलम हसन ने बताया कि इस मुबारक यात्रा में मुझे शहर “बुख़ारा” जाने का भी अवसर प्राप्त हुआ, जो हज़रत इमाम बुखारी रह० का वतन है। वहाँ उनके निवास स्थान और उस प्राचीन मस्जिद की ज़ियारत भी की जो उनके समय में भी मौजूद थी। यह वह धरती है जहाँ अल्लाह वाले, मुहद्दीस, सूफ़ी और इल्म वालों के निशान आज भी महसूस किए जा सकते हैं। बुख़ारा की फ़िज़ा में रूहानियत की एक ऐसी लहर महसूस होती है जैसे ईमान की ख़ुशबू हवा में घुली हो।
अल्हम्दुलिल्लाह! यह यात्रा मेरी रूहानी ज़िंदगी का एक सुनहरा अध्याय साबित हुई। इन तमाम इल्मी और रूहानी केंद्रों को देखकर यक़ीन के साथ कहा जा सकता है कि किसी भी देश या क़ौम को अगर तरक़्क़ी की राह पर ले जाना है तो उसे ज्ञान, संस्कृति और पवित्रता से जोड़ना ही होगा।