दीपक कुमार, बांका
देवनगरी मंदार पर्वत न केवल समुद्र मंथन और 14 रत्नों की प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह स्थान भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के वनवास काल की स्मृतियों का साक्षी भी है। मान्यता है कि त्रेता युग में वन गमन के दौरान माता सीता ने यहीं छठ व्रत किया था। उनकी उस आस्था और तपस्या की निशानी के रूप में आज भी यहां सीता कुंड और राम झरोखा विद्यमान हैं, जो श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।
स्थानीय पुरोहितों और पौराणिक कथाओं के अनुसार, मंदार पर्वत के आरोहण मार्ग में शंखपुंड से पहले स्थित इस कुंड को प्राचीन काल में चक्रवात कुंड कहा जाता था। कहा जाता है कि वनवास के दौरान माता सीता ने भगवान सूर्य की आराधना के लिए यहां कठोर तप किया था। उनकी भक्ति और संकल्प के परिणामस्वरूप यह स्थान “सीता कुंड” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज भी यहां आने वाले श्रद्धालु सीता जी के त्याग, तपस्या और समर्पण को स्मरण करते हुए पूजा-अर्चना करते हैं।
औषधीय गुणों से भरपूर है सीता कुंड का जल
पंडित भवेश चंद्र झा बताते हैं कि सीता कुंड का जल न केवल पवित्र है, बल्कि औषधीय गुणों से भी युक्त है। मंदार पर्वत पर उगने वाली अनेक जड़ी-बूटियाँ वर्षा जल के साथ मिलकर इस कुंड में प्रवाहित होती हैं, जिससे इसका पानी स्वास्थ्यवर्धक और रोगनाशक माना जाता है। कहा जाता है कि इस जल का सेवन या स्पर्श मनुष्य को कई रोगों और कष्टों से मुक्ति दिलाता है। इस कारण यहां वर्षभर श्रद्धालु स्नान, ध्यान और व्रत के लिए आते हैं।
छठ पर्व पर उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़
हर वर्ष छठ महापर्व के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ता है। मंदार पर्वत की तराई में स्थित पापहरनी सरोवर और सीता कुंड पर भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। लोग मानते हैं कि इस स्थल पर छठ व्रत करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण यह स्थल आज भी सनातन परंपरा, आस्था और अध्यात्म का जीवंत केंद्र है। मंदार पर्वत के ऐतिहासिक महत्व और प्राकृतिक सौंदर्य के साथ सीता कुंड आज भी उस दिव्य युग की अमर स्मृति बनकर लोगों की श्रद्धा का प्रतीक बना हुआ है।














