सीमांचल में राजद की जड़ें हिलीं : सैयद आलम बोले, हमने पीढ़ियों तक झोला उठाया, पार्टी ने खंजर घोंपा

न्यूज स्कैन ब्यूरो, कटिहार
सीमांचल की राजनीति में उस वक्त हलचल मच गई जब राजद के पुराने सिपाही और दिवंगत विधायक अब्दुल जलील के बेटे सैयद आलम उर्फ पिंकू ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया।
यह सिर्फ एक नेता का त्यागपत्र नहीं, बल्कि उस सियासी मोहभंग की आवाज है, जो इन दिनों बिहार के महागठबंधन के भीतर गूंजने लगी है। सैयद आलम का यह इस्तीफा सीमांचल में एक संदेश बन गया है है कि राजद की सबसे वफादार जमीन पर अब असंतोष की फसल उगने लगी है। बिहार की चुनावी राजनीति में यह छोटा दिखने वाला विद्रोह, आने वाले दिनों में बड़े असर की शुरुआत भी हो सकता है।
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण से ठीक पहले राजद को यह झटका उस वक्त लगा है जब सीमांचल की करीब 25 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव निर्णायक माना जाता है। सैयद आलम के जाने से यह संदेश गया है कि राजद के परंपरागत वोट बैंक में असंतोष की दरार गहराने लगी है।

“पार्टी का झोला मेरा बाप ढोया, अब और नहीं”
इस्तीफा देते वक्त सैयद आलम का लहजा शिकायत भरा नहीं, बल्कि आक्रोश से लबालब था। उन्होंने कहा, “पार्टी का झोला मेरा बाप भी ढोया और हम भी ढोते रहे। लेकिन अब पीठ में खंजर घोंपा गया है। हमने वफादारी दी, बदले में अपमान मिला।” आलम ने कहा कि वे किसी टिकट या पद के भूखे नहीं थे, बस अपने योगदान की इज्जत चाहते थे।

सीमांचल के मुसलमानों से कटता RJD
सैयद आलम ने आरोप लगाया कि राजद अब सीमांचल की उस जमीन से कट चुकी है, जहाँ कभी लालू यादव का नाम एक भरोसे की तरह लिया जाता था। “RJD अब सिर्फ रिश्तेदारों और चापलूसों की पार्टी बनकर रह गई है। जिसने सीमांचल के मुसलमानों की उम्मीदों को ठगा है।” उनके मुताबिक, सीमांचल के कई पुराने कार्यकर्ता चुपचाप नाराज हैं, और वक्त आने पर पार्टी से किनारा करने वाले हैं।

परिवार से पार्टी तक…टूटी विरासत
अब्दुल जलील, जो कभी सीमांचल में लालू प्रसाद यादव के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में गिने जाते थे, उनके परिवार का यह रुख राजद के लिए प्रतीकात्मक झटका है। राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि सैयद आलम का विद्रोह कदवा विधानसभा क्षेत्र से लेकर पूरे कटिहार जिले में राजद के जनाधार को कमजोर कर सकता है।

भावनाओं से भरा इस्तीफा, ठहराव से टूटी निष्ठा
अपने इस्तीफे के वक्त आलम भावुक हो उठे, कहा- “हमने पार्टी के लिए अपना सब कुछ दिया। लेकिन अब ये पार्टी पहचान खो चुकी है। जब तक जिंदा रहूंगा, इस पार्टी की तरफ मुड़कर नहीं देखूंगा।” उनके समर्थकों ने भी इस फैसले को “आत्मसम्मान की लड़ाई” बताया।