न्यूज स्कैन ब्यूरो, पटना
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में बिहार में निकली 16 दिनों की वोटर अधिकार यात्रा सोमवार को समाप्त हो गई। इस यात्रा ने न केवल कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह भर दिया बल्कि विपक्षी दलों की एकजुटता का भी बड़ा संदेश दिया। 25 जिलों और 110 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरते हुए लगभग 1300 किलोमीटर की इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची से 65 लाख से ज्यादा नाम हटाए जाने के खिलाफ आवाज उठाना था।
लोकतंत्र की “नैतिक लड़ाई”
राहुल गांधी ने इस यात्रा को सिर्फ एक राजनीतिक अभियान नहीं बल्कि एक नैतिक लड़ाई बताया। उनका कहना था कि वोटर लिस्ट से जिन लोगों के नाम काटे गए हैं, उनमें दलित, ओबीसी, मुस्लिम और गरीब तबके के लोग सबसे ज्यादा हैं। गांधी ने कहा – “यह केवल बिहार का मुद्दा नहीं है, यह भारत के लोकतंत्र की रक्षा की लड़ाई है।”
विपक्षी एकता का प्रदर्शन
यात्रा में देशभर से विपक्षी नेताओं की मौजूदगी ने इसे खास बना दिया। तेजस्वी यादव, लालू प्रसाद यादव, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, अशोक गहलोत, अखिलेश यादव, एमके स्टालिन, हेमंत सोरेन, संजय राउत, दीपांकर भट्टाचार्य, डी. राजा और कई अन्य नेता अलग-अलग चरणों में शामिल हुए। इससे विपक्ष ने यह संदेश देने की कोशिश की कि “BJP के खिलाफ INDIA खेमा पूरी तरह एकजुट है।”
कांग्रेस का जनाधार वापस पाने का प्रयास
बीते चार दशकों में बिहार में कांग्रेस का जनाधार कमजोर हुआ है। इस यात्रा ने कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा पैदा की है। राहुल गांधी को पार्टी ने “जमीनी नेता” के रूप में पेश किया। सफेद टी-शर्ट और गमछा पहने, गांवों में लोगों से बातचीत करते हुए और मखाना खेतों का दौरा करते हुए। पार्टी का मकसद साफ है… बिहार में खोया हुआ राजनीतिक स्पेस वापस पाना।
प्रतीकात्मक संदेश और नारे
यात्रा के दौरान “वोट चोर, गद्दी छोड़” जैसे नारे गूंजे। गांधी मैदान से आंबेडकर प्रतिमा तक मार्च कर राहुल गांधी ने गांधी और आंबेडकर दोनों की विरासत का उल्लेख किया। उन्होंने इसे “चुनावी न्याय की क्रांति” बताया।
विवादों से घिरी यात्रा
इस अभियान के दौरान विवाद भी हुए। दरभंगा की रैली में पीएम मोदी पर कथित टिप्पणी, पटना में कार्यकर्ताओं की झड़प और काफिले में एक पुलिसकर्मी के घायल होने की घटनाओं पर BJP ने विपक्ष पर हमला बोला। हालांकि, इन विवादों ने यात्रा को सुर्खियों में बनाए रखा।
असर और आगे का रास्ता
यह यात्रा बिहार की सियासत में हलचल पैदा कर चुकी है। कांग्रेस को इससे संजीवनी मिली है और राहुल गांधी विपक्ष के चेहरे के तौर पर उभरते दिखाई दिए। सवाल यह है कि क्या यह रफ्तार अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस के लिए वोटों में तब्दील होगी या यह भी पिछले प्रयासों की तरह ठंडी पड़ जाएगी। बिहार चुनाव सिर्फ राज्य की राजनीति ही नहीं तय करेंगे बल्कि आने वाले 2026 के असम, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल चुनावों पर भी असर डाल सकते हैं।