न्यूज स्कैन ब्यूरो, सुपौल
8 सितंबर से पितृपक्ष तर्पण पार्वण आरम्भ होकर 21 सितंबर तक महालया पितृपक्ष का अमावस्या के साथ विश्राम हो जाएगा।
प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष से पहले कृष्ण पक्ष के 15 दिन पितृपक्ष के नाम से जाने जाते हैं। अर्थात 7 सितंबर दिन रविवार को ऋषि तर्पण (अगस्त तर्पण) तत्पश्चात पितृ पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुभारंभ हो जायेगा। तथा दिनांक 21 सितंबर को पितृ विसर्जन अमावश्या दिन विश्राम हो जाएगा।।इसे 15 दिवसीय महालया श्राद्ध पक्ष या महालया पितृपक्ष भी कहते हैं। इस पितृपक्ष में व्यक्ति अपने अपने पूर्वजों को तिल ,जल के द्वारा तर्पण करते हैं तथा देहावसान पितरों की तिथि पर श्राद्ध आदि कर्म करके ब्राह्मण भोजन इत्यादि कराते हैं। इसी पक्ष में चतुर्दशी के बाद अमावस्या पर्व आता है जिसे पितृ विसर्जन अमावस्या कहते हैं। वैसे तो प्रत्येक माह की अमावस्या पितरों की पुण्यतिथि मानी गई है लेकिन, आश्विन मास की अमावस्या पितरों के लिए विशेष फलदायी मानी गई है। क्योंकि इस तिथि को समस्त पितरो का विसर्जन होता है ।जिन पितरों की पुण्यतिथि परिजनों को ज्ञात नहीं होती या किसी कारण बस जिनका श्राद्ध तर्पण इत्यादि पितृपक्ष के 15 दिनों में नहीं हो पाता वह उनका श्राद्ध तर्पण आदि इसी दिन करने से पितरों को प्राप्त होता है। यह कहना है त्रिलोक धाम गोसपुर निवासी अटल मिथिला सम्मान से सम्मानित पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र का। उन्होंने पितृपक्ष महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ऊपर की रश्मि एवं रश्मि के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। श्राद्ध की मूलभूत परिभाषा यह है कि, प्रेत और पितर के निमित्त उनकी आत्मा की शांति के लिए श्रद्धा पूर्वक जो अर्पित किया जाता है वह श्राद्ध है।पितृ पक्ष में जो श्राद्ध तर्पण किया जाता है उससे वह पितृगण स्वयं आपलावित्त होते है ।पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो तिल आदि से तर्पण श्राद्ध आदि करते हैं उसमें रेतस का अंश लेकर वह चंद्रलोक में चंद्रमा ग्रहण करते हैं । ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से ऊपर की ओर होने लगता है ।15 दिन वे अपने-अपने भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से उसी रश्मि के साथ रवाना हो जाते हैं ।इसीलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं ।तथा इस पितृपक्ष में श्राद्ध तर्पण आदि करने से पितरों को तृप्त संतुष्टि होती है। अतः मानवीय मर्यादाओं में पितरों का श्राद्ध कर्म तर्पण आदि करना अति आवश्यक है। पितृ पक्ष में उन पूर्वजों को स्मरण कर उनकी पूजा-अर्चना करना हमारी सांस्कृतिक परंपरा है। जिससे हमें सुख-शांति एवं संतुष्टि प्राप्त होती है। यह भी कहा गया है जब सूर्य कन्या राशि में आते हैं तो पूर्वज पितर अपने पुत्र के यहां आते हैं । विशेषतया आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या के दिन वह दरवाजे पर आकर बैठ जाते हैं। यदि उस दिन उनका तर्पण श्राद्ध दान आदि कर्म नहीं किया जाता है तो वे पितर आशीर्वाद की जगह श्राप देकर लौट जाते हैं ।अतः उस दिन पत्र पुष्प फल तिल जल तर्पण से यथा सकती अपने पूर्वजों को पितरों को तृप्त करना चाहिए जिससे उनको संतुष्टि मिले।