मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गुरुवार को मुस्लिमों के एक कार्यक्रम के दौरान चर्चा के केंद्र में आ गए। मंत्री जमा खान ने उन्हें मुस्लिम टोपी पहनाने की कोशिश की, लेकिन नीतीश ने टोपी खुद पहनने से इनकार किया और उल्टे वही टोपी जमा खान को ही पहना दी।
चूँकि नीतीश इस समय एनडीए गठबंधन (भाजपा के साथ) में हैं, इसलिए इस घटना को सीधा भगवा बनाम अल्पसंख्यक राजनीति के नजरिये से देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषण भी हो रहे हैं। माना जा रहा है कि नीतीश पर भगवा फैक्टर का दबाव है। बिहार में विधानसभा चुनाव का माहौल गरमा चुका है। एेसे में इस प्रकरण पर निश्चित तौर पर सियासत गर्म होगी।

अतीत में टोपी-तिलक से जुड़ी घटनाएँ
यह सत्य है कि भारतीय राजनीति में धार्मिक प्रतीकों से दूरी या नजदीकी कई बार बड़ा संदेश देती रही है। नरेंद्र मोदी ने 2011 में गुजरात में सद्भावना उपवास के दौरान मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार किया। यह सीधे तौर पर हिंदुत्व आधार को साधने का प्रतीक माना गया। राहुल गांधी मंदिरों में माथे पर तिलक लगाते दिखते हैं, पर मुस्लिम टोपी के साथ मंच साझा करने की तस्वीरें बेहद कम हैं। इसे ‘सॉफ्ट हिंदुत्व रणनीति’ माना जाता है। लालू प्रसाद यादव व मुलायम सिंह यादव – दोनों ने खुले मंच पर मुस्लिम टोपी पहनने में कभी परहेज नहीं किया और इसे अल्पसंख्यक समुदाय के साथ जुड़ाव का प्रतीक बनाया। 2018 में लखनऊ में ईद के मौके पर अखिलेश यादव मुस्लिम टोपी पहनने से बचे, जिसके बाद उन पर सवाल खड़े हुए। इन घटनाओं ने बार-बार दिखाया है कि टोपी या तिलक जैसे प्रतीक राजनीति में वोटर बेस को संदेश देने का जरिया बन जाते हैं। बिहार में अभी विधानसभा चुनाव होना है, इसीलिए इसके गहरे राजनीतिक संकेत हैं।
बिहार में मुस्लिम मतदाता और प्रभाव
जनसंख्या अनुपात – बिहार की आबादी में मुस्लिमों की हिस्सेदारी लगभग 16–17% है।
प्रभाव वाले इलाके – सीमांचल (किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया) में मुस्लिम आबादी कई सीटों पर 35% से 70% तक है।
निर्णायक सीटें – विधानसभा की 50–55 सीटों और लोकसभा की 5–6 सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक माने जाते हैं।
गठबंधन पर क्या असर होगा
नीतीश कुमार ने टोपी पहनने से इनकार करते हुए भी पूरी तरह नकारात्मक संदेश जाने से बचने के लिए टोपी मंत्री जमा खान को पहना दी। यानी उनकी भाजपा के हिंदुत्व आधार और मुस्लिम संवेदनशीलता के बीच संतुलन साधने की कोशिश रही है। राजद-कांग्रेस महागठबंधन का आधार मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण रहा है। अगर मुस्लिमों का थोड़ा भी रुझान नीतीश की ओर गया तो राजद की गणित गड़बड़ा सकता है। विपक्षी निश्चित तौर पर इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश करेंगे। मुस्लिम मतदाताओं को यह समझाने की कोशिश होगी कि नीतीश भगवा के दबाव में हैं।
नीतीश कुमार का यह टोपी प्रसंग महज सामान्य घटना नहीं है। बल्कि चुनावी दौर में यह बड़ा प्रतीक है। यह दिखाता है कि किस तरह नेता एक ओर हिंदुत्व समर्थकों को नाराज नहीं करना चाहते और दूसरी ओर मुस्लिम मतदाताओं को पूरी तरह खोने का जोखिम भी नहीं उठाना चाहते। आने वाले चुनावों में विपक्ष और सत्ता पक्ष, दोनों इस घटना को अपने-अपने तरीके से भुनाने की कोशिश करेंगे।