प्रदीप विद्रोही, भागलपुर
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन की एकजुटता पर कहलगांव से बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। एक ही सीट पर राजद और कांग्रेस के दो अलग-अलग उम्मीदवारों के मैदान में उतरने से सियासी तापमान चरम पर है। महागठबंधन की गांठ यहां आकर ढीली पड़ती नजर आ रही है और जनता के बीच यही चर्चा है कि “असल उम्मीदवार कौन?”
एक तरफ RJD का ‘युवराज’, दूसरी ओर कांग्रेस का ‘पुराना सिपाही’
राजद ने झारखंड सरकार में मंत्री संजय यादव के बेटे राजनीश यादव को कहलगांव से उम्मीदवार बनाकर चुनावी समर में उतार दिया है। उन्होंने न सिर्फ प्रचार शुरू कर दिया है, बल्कि आज आधिकारिक तौर पर नामांकन भी दाखिल कर दिया है।

दूसरी तरफ, कांग्रेस के पुराने नेता प्रवीण सिंह कुशवाहा ने दावा ठोंका है कि पार्टी ने उन्हें टिकट दिया है। इस आशय की जानकारी प्रवीण और उनके समर्थक तेजी से सोशल मीडिया एक्स पर चस्पा कर रहे हैं। तस्वीर संग वीडियो भी पोस्ट कर रहे हैं।

उनका नामांकन 20 अक्टूबर को होना तय है। उनके समर्थक अभी से ताल ठोक रहे हैं और कांग्रेस कार्यालयों में चहल-पहल तेज हो गई है। वहीं राजद से टिकट कटने के बाद सुभाष यादव ने भी एनआर कटा लिया है और वे भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरेंगे।

गठबंधन में समन्वय की कमी या सियासी चाल?
दोनों दलों के अलग-अलग उम्मीदवारों ने न केवल राजनीतिक समीकरणों को उलझा दिया है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा कर दिया है कि महागठबंधन का ‘एक उम्मीदवार, एक सीट’ का फार्मूला कहां गया?
क्या यह आंतरिक संवादहीनता का परिणाम है या फिर कोई रणनीतिक दांव?
जनता के बीच भ्रम और बेचैनी
स्थानीय मतदाता असमंजस में हैं। एक ही गठबंधन के दो प्रत्याशी? किसे मानें असली? किसे समझें बागी और किसे समझें अधिकृत?
चुनाव आयोग की वेबसाइट और महागठबंधन की आधिकारिक सूची आने तक यह असमंजस बना रहेगा लेकिन इससे पहले ही दोनों खेमों के कार्यकर्ताओं ने अपना-अपना मोर्चा संभाल लिया है। पोस्टर-पर्चे, जनसंपर्क और सोशल मीडिया वार शुरू हो चुके हैं।
अब आगे क्या?
अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि महागठबंधन के शीर्ष नेतृत्व विशेषकर तेजस्वी यादव और कांग्रेस आलाकमान इस पेच को कैसे सुलझाते हैं। क्या दोनों पार्टियां आपसी बातचीत से एक उम्मीदवार पर सहमति बनाएंगी, या कहलगांव सीट पर “फ्रेंडली फाइट” के नाम पर मुकाबला खुला छोड़ देंगी?
कहलगांव में चुनावी पारा चढ़ता जा रहा है। महागठबंधन की रणनीति उलझी हुई दिख रही है, और जनता के मन में अब सिर्फ एक ही सवाल है:
“इस सीट से कौन होगा असली खिलाड़ी और किसका होगा सिर्फ दावा?” अब देखना ये है कि 20 अक्टूबर के बाद कहलगांव की तस्वीर कितनी साफ होती है या उलझन और गहराती है।