न्यूज स्कैन ब्यूरो। परबत्ता(खगड़िया)
प्रखंड के आधा दर्जन से अधिक पंचायतों के दर्जन भर गांवों में बाढ के पानी से आम लोगों को परेशानी हो रही है।गंगा नदी का पानी उतरने लगा है।इसके बावजूद बाँध के अंदर रह रहे लोगों की परेशानियों का अंत नहीं हो रहा है।गंगा नदी से सटे गांवों में भूगर्भीय जलप्लावन से बाढ जैसी स्थिति बनती जा रही है।इसे स्थानीय बोली में कसोय का पानी कहा जाता है।परबत्ता प्रखंड तीन तरफ से गंगा नदी से घिरा हुआ है।प्रत्येक वर्ष जब गंगा नदी का जलस्तर बढता है तो बाँध के बाहर रह रहे लोगों को बाढ झेलना पड़ता है।वहीं जब गंगा का जलस्तर घटने लगता है तो बाँध के अंदर रह रहे लोगों को बाढ झेलना पड़ता है।गंगा नदी से सटे गांवों की मिट्टी में खुदाई करने पर कुछ ही गहराई में सफेद बालू निकल जाता है।यह सफेद बालू ही भूगर्भीय जल का सुगम वाहक होता है।जैसे ही गंगा नदी का बढा हुआ जलस्तर एक सप्ताह या उससे अधिक दिनों तक रहता है।

वैसे ही नदी से सटे दो से पाँच किलोमीटर में बसे गांवों के गड्ढे तथा निचले ईलाकों में स्वतः पानी भरने लगता है।परबत्ता प्रखंड में इस वर्ष दुधैला,भरतखंड, खजरैठा,मथुरापुर,भरसो,थेभाय,सलारपुर, लगार,खनुआ राका, अगुवानी,डुमड़िया बुजुर्ग,सिराजपुर, कन्हैयाचक,नयागांव गोढियासी,तेमथा, जानकीचक,कज्जलवन,कवेला,डुमड़िया खुर्द तथा अररिया गांव का यही हाल है।इन सब में इस बाढ से सबसे अधिक सिराजपुर तथा जानकीचक प्रभावित है।जिन लोगों का पुराना घर है उनके घरों में पानी घुसा हुआ है।जबकि जिन लोगों ने सतह को ऊँचा कर के घर बनवाया है उनके घर के चारों तरफ पानी जमा हुआ है
(पशुपालकों को हो रही है सबसे अधिक परेशानी)
इन दोनों प्रकार के बाढ से प्रखंड के पशुपालकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।प्रखंड में लगभग 70 हजार दुधारु पशुओं का पालन हो रहा है।इनमें से अधिकांश दियारा क्षेत्र में रहते हैं।गंगा नदी के जलस्तर में वृद्धि के बाद इन पशुपालकों ने चारा की व्यवस्था में अपने पशुधन के साथ निर्माणाधीन फोरलेन सड़क को आश्रय बनाया।वर्तमान में अधिकांश पशुपालक अपने पशुधन को लेकर सड़कों पर समय काटने को मजबूर हैं।बाँध के अंदर पानी आकर जम जाने की वजह से सूखा तथा हरा दोनों प्रकार के चारा का संकट हो गया है।इस स्थिति का लाभ भूसा का व्यापार करने वाले व्यापारी उठा रहे हैं तथा पशुपालक किसान अनाज से मँहगा भूसा खरीदने पर मजबूर हैं।
(महीनों रहता है यह जलजमाव)
गंगा नदी के पानी का यह भूगर्भीय जल प्लावन से हुआ जलजमाव महीनों तक बने रहने की आशंका है।इसके पीछे का कारण यह है कि अधिकांश स्थानों पर लोगों के द्वारा इस जल के निकासी के मार्ग को बाधित कर दिया गया है।महीनों तक जमे रहने की वजह से इस पानी में दुर्गंध हो जाता है।इससे बीमारियों के फैलने की आशंका व्याप्त है।आमतौर पर इस बाढ को प्रशासन के द्वारा के द्वारा प्राकृतिक आपदा नहीं माना जाता है।इस कारण से इस बाढ से प्रभावित लोगों को कोई सरकारी राहत भी नहीं मिलता है।
(राजनीतिक दल कर रहे हैं राहत देने की मांग)
प्रखंड में काम कर रहे राजनीतिक दलों के नेताओं का कहना है कि भूगर्भीय जल प्लावन से आई बाढ को भी प्रशासन व सरकार बाढ जैसी आपदा के समानप्राकृतिक आपदा माने।सी पी आई एम के नेता नवीन चौधरी ने कहा कि जब महानगर में बारिश से हुए जलजमाव को आपदा मानकर सरकारी स्तर से राहत कार्य चलाया जाता है तो गांव व प्रखंड में इस जलप्लावन को आपदा नहीं मानना दोहरी नीति कहलायेगी।वहीं जिप सदस्य जयप्रकाश यादव ने कहा कि सरकार एक ही राज्य में दो तरह की नीतियाँ कैसे चला सकती है।सी पी आई के अंचल मंत्री कैलाश पासवान का कहना था कि सरकार को पशुपालकों के हित में ठोस कदम उठाना चाहिये। कांग्रेस प्रखंड अध्यक्ष प्रभाकर यादव ने बताया कि प्रशासन व सरकार के द्वारा आपदा को लेकर भेदभाव करना निंदनीय है।वहीं राजद के अखिलेश्वर दास का कहना है कि सरकार का अमला इन आपदाओं को अपनी कमाई के अवसर के तौर पर लेने से गुरेज नहीं करता है।