ऑस्कर की दहलीज़ पर बिहार का ‘ख़्वाबिदा’, सुमन शेखर की शॉर्ट फिल्म का इंटरनेशनल फेस्टिवल में चयन

  • अभिजीत सिन्हा, खगड़िया

जिले के लिए यह गर्व का क्षण है। हिन्दी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया के संस्थापक कवि कैलाश झा किंकर के पुत्र और बहुमुखी अभिनेता-निर्देशक सुमन शेखर की शॉर्ट फिल्म ‘ख़्वाबिदा’ को प्रतिष्ठित बेंगलुरु इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल 2025 (BISFF) में आधिकारिक चयन मिला है।

इस उपलब्धि ने ‘ख़्वाबिदा’ को ऑस्कर रेस में शामिल होने की दिशा में एक बड़ा कदम दिलाया है, क्योंकि यह फेस्टिवल पहले भी ऑस्कर-नॉमिनेटेड और विनिंग फिल्मों को प्लेटफ़ॉर्म दे चुका है।

फिल्म से जुड़ी खास बातें

मुख्य भूमिका: सुमन शेखर और नम्रता वार्षने

निर्माता: सीमा ओबेरॉय व चेतन ओबेरॉय

निर्देशक: प्रशांत बेबार व विशाल तिवारी

संगीत: रागा ट्यून

डीओपी: आयुष झा

फिल्म की कहानी, अभिनय और निर्देशन को समीक्षकों द्वारा काफी सराहा गया है, और इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पहचान मिल रही है।

थिएटर से इंटरनेशनल मंच तक का सफर

सुमन शेखर लंबे समय से थिएटर और सिनेमा की दुनिया से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बेगम का तकिया, पश्मीना, परतें, महारथी, महालीला, ताजमहल का टेंडर, संटू जी कहिन, अंधेर नगरी चौपट राजा, लक्ष्मी, दंड बैठक कसरत जैसे नाटकों और फिल्मों में काम किया है।

सिर्फ अभिनय ही नहीं, बल्कि निर्देशन और लेखन में भी उनकी पकड़ मजबूत रही है। उनकी कुछ चर्चित फिल्मों में शामिल हैं:

लाउडस्पीकर (अवार्ड विनिंग)

शेड्स ऑफ रेड (अवार्ड विनिंग)

स्माइल वरसेज स्माइलीज (अवार्ड विनिंग)

व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी, प्राची, अनचाहा, चिट्ठी है, फर्स्ट लव आदि।

जर्मनी में भी गूंजी आवाज़

हाल ही में सुमन शेखर की एक और शॉर्ट फिल्म ‘द सेडिस्ट’ की स्क्रीनिंग जर्मनी में हुई, जो उनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान को और मजबूत करती है।

बिहार की माटी से, विश्व मंच तक

खगड़िया जैसे छोटे शहर से निकलकर सुमन शेखर का यह सफर साबित करता है कि अगर लगन हो तो सीमाएं कोई मायने नहीं रखतीं। ‘ख़्वाबिदा’ के ज़रिए उन्होंने सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि बिहार की प्रतिभा और उसकी उड़ान को दुनिया के सामने पेश किया है।