पति पत्नी के अटूट प्रेम का स्वरूप है करवाचौथ :आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र

न्यूज स्कैन ब्यूरो, सुपौल

अमृत योग में मानेगा स्त्रियों के सुहाग रक्षा हेतु करवा चौथ। रात्रि के 9 बजकर 3 मिनट पर चंद्रोदय।
इस व्रत में महिलाओं का चन्द्र दर्शन की है प्रधानता।
नूतन चलनी से चांद के दर्शन समय पति रहते हैं सामने। पति के हाथ से दिया गया जल से ही सुहागिन महिलाए व्रत पूर्ण करती है।
यह व्रत भी दिन भर निराधार रहकर पूर्ण करने की परंपरा है। वैसे यह व्रत मिथिला में कम ही मनाया जाता है। धीरे धीरे यह व्रत मिथिला में भी फैलने लगी है। इस व्रत को करवीर चतुर्थी भी कहा जाता है। यह कहना है गोसपुर ग्राम निवासी पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र का। उन्होंने बताया कि, इस व्रत में महिलाएं सूर्योदय से लेकर के रात्रि अर्थात चंद्र के दर्शन तक में निर्जला व्रत रखती हैं। उपवास करके और संध्या काल अर्थात रात्रि के समय में जब चंद्रमा का उदय होता है तब चंद्रमा को अर्थ देकर पूजन करके उनसे मंगल कामना और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करके पति का मुख् अवलोकन कर इस व्रत को पूर्ण किया जाता है ।यह व्रत पति पत्नी के प्रेम का एक विशिष्ट स्वरूप प्रस्तुत करता है। इस व्रत को करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है, और संतान सुयोग्य होते हैं। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है जो आज है।