- शहीद जवान अंकित यादव को नम आंखों से दी गई अंतिम विदाई
प्रदीप विद्रोही, भागलपुर
बाढ़ की मिट्टी भी आज लाल हो गई थी… पानी की हर बूंद में एक मां की चीत्कार थी, एक पत्नी की टूटती उम्मीदें थीं, और एक मासूम बेटे की अबूझ चुप्पी थी। रंगरा प्रखंड के चापर गांव में जब शहीद जवान अंकित यादव (35) का पार्थिव शरीर पहुंचा, तो पूरा गांव सन्न हो गया। हर आंख नम, हर दिल भारी।
शहीद अंकित यादव का अंतिम संस्कार घुटने भर पानी में किया गया। जहां आमतौर पर अग्नि की लपटें आकाश को छूती हैं, आज वहां पानी था—खामोश, ठहरा हुआ, जैसे वो खुद भी इस वीर सपूत को सैल्यूट कर रहा हो।
सबसे भावुक क्षण तब आया, जब अंकित के चार साल के बेटे ने कांपते हाथों से अपने पिता को मुखाग्नि दी। उस पल, आकाश भी रो पड़ा—मूसलाधार बारिश नहीं थी, लेकिन हर इंसान की आंखों से गिरती बूंदें किसी कम बारिश से कम नहीं थीं।
शहीद का पार्थिव शरीर जब बाढ़ से घिरे गांव में पहुंचा, तो सेना की गाड़ी कीचड़ में फंस गई। फिर, गांव के युवाओं ने कंधों पर तिरंगे में लिपटा शरीर उठाया, और पूरे गांव में घुमाया। हर मोड़ पर लोग फूल बरसाते रहे, “अंकित अमर रहें” के नारे गूंजते रहे, लेकिन ये गूंज उस खामोशी से हार जाती रही, जो एक मां की सूनी मांग में थी, एक पत्नी की सूनी आँखों में थी।


शहादत की कहानी
जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में मंगलवार रात आतंकियों की घुसपैठ को रोकते हुए अंकित यादव शहीद हो गए। पाकिस्तानी सेना की बैट टीम ने बॉर्डर पर हमला किया, जिसे भारतीय जवानों ने मुंहतोड़ जवाब दिया। लेकिन इस जवाबी कार्रवाई में अंकित वीरगति को प्राप्त हो गए।
उनकी शहादत की खबर जब गांव पहुंची, तो सन्नाटा गूंजने लगा। लोग टूटे, लेकिन गर्व से भरे। गांव के बुजुर्गों ने कहा, “हमने पहली बार अपने गांव के बेटे को तिरंगे में लिपटे देखा, ये दुःख भी है, और गौरव भी।”


अंकित की जीवन गाथा
अंकित यादव 2009 में बिहार रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। सेना उनके खून में थी — उनके तीनों भाई भी भारतीय सेना में सेवाएं दे चुके हैं। एक महीना पहले ही वे छुट्टी पर घर आए थे। उन्होंने अपने गांव की गलियों में अपने बेटों को खेलते देखा था, पत्नी संग खेतों की हरियाली को निहारा था… किसे पता था कि ये उनका आखिरी मिलन होगा।
चार दिन पहले उन्होंने अपने वार्ड सदस्य को फोन कर पत्नी का वोटर कार्ड बनाने की बात की थी। शायद उन्हें अंदेशा नहीं था कि वो खुद इस लोकतंत्र की सबसे बड़ी कीमत चुका देंगे—अपनी जान।


सरकार और प्रशासन की उपस्थिति
सहकारिता मंत्री सह जिला प्रभारी, भागलपुर संतोष कुमार सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे खुद मौके पर पहुंचे। प्रशासनिक अधिकारियों के साथ वे भी इस आखिरी विदाई के साक्षी बने। उन्होंने कहा, “अंकित यादव ने जो बलिदान दिया है, वह केवल उनके परिवार का नहीं, पूरे देश का है। उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।”
इस गांव ने आज सिर्फ एक बेटा नहीं खोया, भारत मां ने अपनी गोद का एक लाल खो दिया।
घुटने भर पानी में भले ही अंतिम संस्कार हुआ हो,
लेकिन शहीद अंकित यादव की शहादत की ऊंचाई आसमान से भी ऊपर है।


