ततहीर कौसर , पटना
भागलपुर से दो ऐसी प्रेरणादायक कहानी सामने आई है जो बताती है कि अगर जज्बा सच्चा हो तो हालात भी कदम चूम लेते हैं।
यह कहानी है नाथनगर प्रखंड के शहजादपुर इलाके के मनोहरपुर गांव से आशुतोष चौरसिया और अमरपुर के तारडीह बैदाचक गांव के रहने वाले प्रीतम की। दोनों ने ही खेल में अपनी रुचि को मेहनत से इस ऊंचाई पर पहुंचाया की राज्य सम्मान से नवाजे गए। मंगलवार को पटना के ज्ञान भवन में आशुतोष और शुक्रवार को प्रीतम को राज्य खेल सम्मान 2025 के तहत बिहार सरकार और बिहार स्टेट स्पोर्ट्स ऑथोरिटी (बीएसएसए) ने उसे राज्य खेल सम्मान राष्ट्रीय श्रेणी से सम्मानित किया है।
आशुतोष चौरसिया के पिता बलबीर प्रसाद चौरसिया शहर की गलियों में नाश्ते का ठेला लगाते हैं। मां बेबी देवी अपना घर संभालते हुए बेटे के सपनों की हिफाजत करती हैं। इन्हीं उम्मीदों और संघर्ष के बीच पला-बढ़ा यह युवा अब पूरे शहर का गर्व बन गया है। उसने पेंचक सिलाट की 12वीं सीनियर नेशनल चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीतकर न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि पूरे भागलपुर का नाम रोशन किया है। वहीं प्रीतम पंडित ने साबित कर दिया कि संघर्ष किसी को रोक नहीं सकता। उसने रग्बी में बिहार का नाम राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया है। प्रीतम के पिता मनोज पंडित चाय बेचकर परिवार चलाते हैं, जबकि मां सीता देवी गृहिणी हैं। तीन भाई-बहनों में प्रीतम न सिर्फ पढ़ाई में बल्कि खेल में भी आगे है।
सीमित संसाधनों के बावजूद दोनों ने हार नहीं मानी। आशुतोष ने पढ़ाई टेक्नोमिशन स्कूल से की, लेकिन दिल खेल में रचा-बसा रहा। जहां दूसरे बच्चों के पास कोचिंग, प्रोटीन डाइट और गियर होते हैं, वहीं आशुतोष ने सादगी में मेहनत का रास्ता चुना। बीते वर्ष 16 से 18 नवंबर को श्रीनगर में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 79-83 किग्रा वर्ग में शानदार प्रदर्शन कर रजत पदक अपने नाम करने के लिए मिला है । तांडी तुंग्गल गंडा रेगु सोलो कैटेगरी में खेलते हुए उसने अपने राज्य का नाम रोशन किया है।
आशुतोष कहते हैं मेरे पिता रोज धूप और बारिश में ठेला लगाते हैं। जब भी थकान महसूस होती है, बस उनका चेहरा याद आ जाता है और मैं फिर से उठ खड़ा होता हूं। मेरी मां मुझे हमेशा कहती हैं पढ़ाई और खेल दोनों जरूरी है। खेल तुम्हे और अनुशासित तरीके से जीना सिखा रहा है। उसके पिता बलबीर प्रसाद चौरसिया जब बात करते हैं तो उनकी आंखों में अब गर्व के आंसू हैं वो कहते हैं हमने अपने बेटे को सिखाया है कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। बस ईमानदारी से किया गया काम ही बड़ा है। हमने उसे कभी कोई सपना देखने से नहीं रोका। बल्कि उसे पूरा करने के लिए प्रेरित किया। आज मेरा बेटा गर्व से मेरा नाम और काम सभी को बताता है और लोग मुझे उसका पिता होने पर बधाई दे रहे हैं।
वहीं प्रीतम पिछले पांच वर्षों से रग्बी खेल रहे हैं और अब तक दो बार नेशनल स्तर पर बिहार का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उन्हें भी बिहार सरकार की ओर से दो बार राज्य खेल सम्मान मिल चुका है। प्रीतम कहते हैं जब पापा चाय की दुकान पर मेहनत करते हैं, तो लगता है कि मुझे भी कुछ ऐसा करना है जिससे लोग उनके नाम से मुझे पहचानें। मैंने कभी हालात को बहाना नहीं बनाया, बल्कि उन्हें अपनी ताकत बना लिया। आशुतोष और प्रीतम की यह जीत सिर्फ एक मेडल की कहानी नहीं, बल्कि उस संघर्ष का प्रतीक है जो बताता है कि सपनों को उड़ान देने के लिए आसमान नहीं, हिम्मत चाहिए।



