- कोसी जैसे दुर्गम क्षेत्र में जयराम मिश्र ने अखिल भारतीय कांग्रेस को दी थी मजबूती
- बिनोबा भावे के भूदान आंदोलन में निभाई सक्रिय भूमिका, सत्ता प्रलोभन से बना रखी थी दूरी
विनय मिश्रा, सुपौल
स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ सदर प्रखंड के जगतपुर गांव के स्वतंत्रता सेनानी जयराम मिश्र ने अग्रणी भूमिका निभाई। वे ब्रिटिश शासन के दमन के सामने कभी नहीं झुके। बल्कि डटकर सामना किया। जनमानस को अंग्रेजों से खिलाफ एकजुट किया।
उन्हें याद करते हुए 95 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी जयबीर झा बताते हैं कि मिश्रजी कोसी क्षेत्र के सबसे वरिष्ठ सेनानी थे। उमा बाबू, शत्रुघ्न बाबू, लहटन चौधरी सहित कई क्रांतिकारियों के साथ वे अंग्रेजों को भगाने की रणनीति तैयार करते थे। स्वतंत्रता सेनानी जयराम मिश्र का आजादी के आंदोलन में योगदान का जिक्र आर्यसमाज के किताब में मिलती है। जयराम मिश्र का जन्म 1894 में हुआ। यह वह दौर था जब अंग्रेजों का दमन देशभर में बढ़ता जा रहा था। गांधीजी के नेतृत्व में 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई। जयराम मिश्र गांधीजी के आह्वान पर अंग्रेजों के अन्यायपूर्ण कानूनों व दमन के विरोध में देशव्यापी अहिंसक आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जयराम मिश्र की पहचान सहरसा समेत सुपौल के भपटियाही, किशनपुर और प्रतापगंज में लोगों के बीच गांधीजी के एक बड़े अनुयायी के रूप में बनी।
जनमानस को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए किया एकजुट
वर्ष 1934 में भूकंप और बाढ़ के कारण कोसी के लोगों की पीड़ा बढ़ गई। इसने उन्हें मानवसेवा के लिए प्रेरित किया। उन्होंने पीड़ितों के बीच रात-दिन रहकर सेवा की। इस दौरान उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकजूट करने का मौका मिला। जयराम मिश्र की बढ़ती सक्रियता के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने उन पर दबिश बढ़ा दी। इसके बावजूद श्री मिश्र अंग्रेजी हुकूमत का डटकर मुकाबला किया। जिले में अखिल भारतीय कांग्रेस के अग्रणी नेता जयराम मिश्र 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के मुख्य रणनीतिकार माने जाते हैं। जगतपुर में उनके पास क्रांतिकारियों का जमावड़ा लगता था। क्रांतिकारियों की बढ़ती गतिविधियों के कारण ही अंग्रेजों ने यहां कोठी बनाई। इसके बावजूद क्रांतिकारियों के हौसले कम नहीं हुए। आखिरकार क्रांतिकारियों के संघर्ष और बलिदान से देश आजाद हुआ।
कई वर्ष सुपौल अनुमंडल के अखिल भारतीय कांग्रेस मंत्री रहे
स्वतंत्रता सेनानी जयराम मिश्र कई साल तक सुपौल अनुमंडल के कांग्रेस मंत्री रहे। उन्होंने दो-दो बार भागलपुर जिला बोर्ड के निर्वाचित सदस्य बनकर काम किया। सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य के रूप में भी उन्होंने सेवा की। सन 1947 में तेजेन्द्र हाई स्कूल बरुआरी के स्थापना प्रबंध कमिटी सदस्य भी रहे। बाद में वे बिनोवा भावे के भूदान आंदोलन में सक्रिय हो गए। लोगों को भूदान आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। हालांकि इस दौरान उन्होंने सरकार व सत्ता से दूरी बनाए रखी। श्री मिश्र का निधन 1975 में हुआ।
आजादी के आंदोलन में जंगल से पकड़े गए तीन शेर में जगतपुर के स्वतंत्रता सेनानी कुश्वेश्वर मल्लिक भी थे
- महात्मा गांधी के करो या मरो के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
- जेल में अंग्रेजों की यातनाओं को बर्दाश्त किया, अखिल भारतीय कांग्रेस को किया मजबूत
सुपौल। स्वतंत्रता आंदोलन में सेनानियों ने अपने संघर्ष व बलिदान से आजाद भारत का सपना साकार किया। देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने में सुपौल जिले के क्रांतिकारियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। महज 16 वर्ष की उम्र में जगतपुर गांव के कुशेश्वर मल्लिक आजादी के आंदोलन में सक्रिय हो गए। कुशेश्वर मल्लिक का जन्म 1926 में जगतपुर में हुआ था। छोटी उम्र में माता-पिता का देहांत हो जाने के कारण उनका बचपन परेशानियों में गुजरा। अगस्त 1942 में गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन के समय वे गणपतगंज हाईस्कूल में मैट्रिक की पढ़ाई कर रहे थे। उसी वक्त गांधीजी के आह्वान पर वे स्वतंत्रता संग्राम में कुद गए। युवा जोश में “करेंगे या मरेंगे” का नारा लगाते हुए उन्होंने अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी अच्युतानंद झा, जयराम मिश्र और कुलानन्द मल्लिक जैसे अपने कुछ अन्य साथियों के साथ सुपौल डाक घर पहुंच गए। वे वहां मौजूद लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए उकसाया। इसके बाद वहां मौजूद भीड़ ने डाकघर के अंग्रेज पृष्ठ पोषक अधिकारी के समक्ष विरोध- प्रदर्शन किया। श्री मल्लिक अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ सुपौल डाकघर में तोड़फोड़ भी किया। भीड़ ने डाकघर में सरकारी दस्तावेज को तहस-नहस कर दिया। इसके बाद अंग्रेजी सिपाहियों ने क्रांतिकारियों पर दबिश बढ़ाई। हालांकि इससे पहले कुश्वेश्वर मल्लिक वहां से अपने दो साथियों के साथ फरार हो गए। उनके पीछे पुलिस लगी थी। वे अपने अन्य क्रांतिकारी साथियों के साथ थलहा घाट के जंगल में छुप गए। दो-तीन दिनों तक बिना कुछ भोजन किए थलहा के जंगल में भटकते रहे। जब वे वहां से निकलने का प्रयास कर रहे थे, तभी अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें और उनके दो अन्य साथियों को गिरफ्तार कर लिया। अगले दिन स्थानीय समाचार पत्रों में जंगल के तीन शेर पकड़े गए शीर्षक से खबर छपी। उनको बक्सर जेल ले जाया गया। यहां ट्रायल चला। उनके ऊपर देशद्रोह और राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का मामला लगाकर यहां से उन्हें भागलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। लगभग तीन वर्षों तक जेल में अंग्रेजों के अत्याचार के बाद 1945 में उन्हें जेल से रिहा किया गया। जेल से निकलने के बाद वे कांग्रेस के स्थानीय कार्यालय में जनसंपर्क के कार्य करने लगे। उन्होंने सुपौल जिले में भारतीय कांग्रेस को मजबूती दी। आजादी के आंदोलन में जिले के ऐसे कई क्रांतिकारियों की चर्चा राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत करती है।