संतोष कुशवाहा का टिकट कटा, रास्ता बदला… अब राजद में नई पारी की शुरुआत

न्यूज़ स्कैन ब्यूरो | पूर्णिया
पूर्णिया की सियासत में आज एक बड़ा मोड़ आने जा रहा है। जदयू से दो बार सांसद रहे संतोष कुशवाहा आज दोपहर 3 बजे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की सदस्यता लेने जा रहे हैं।
यह वही संतोष कुशवाहा हैं, जिन्होंने कभी जदयू के संगठन से लेकर विधानसभा तक, नीतीश कुमार की राजनीति को ज़मीन पर मज़बूती दी थी। लेकिन इस बार कहानी कुछ और है… “टिकट मिला नहीं, सम्मान छिन गया।”

नीतीश की हरी झंडी, लेकिन आखिरी वक्त पर टिकट कट गया
सूत्रों के मुताबिक, संतोष कुशवाहा को पहले से संकेत था कि कदवा सीट से उन्हें उम्मीदवार बनाया जाएगा। नीतीश कुमार की “हरी झंडी” भी मिल चुकी थी। उन्होंने इलाके में आईटी सेल की टीम तक बना दी थी और चुनावी ज़मीन तैयार करना भी शुरू कर दिया था। लेकिन, आखिरी वक्त में टिकट दुलाल चंद गोस्वामी को दे दिया गया। यानी, टिकट नहीं—“टर्निंग पॉइंट” मिल गया। एेसा बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द रहने वाले नेताओं ने संतोष का राजनीतिक कद छोटा करने के लिए साजिशन एेसा किया है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि यह सिर्फ़ टिकट कटना नहीं, बल्कि संतोष कुशवाहा के कद को सीमित करने की कोशिश थी। पूर्व में उन्होंने अपने भाई शंकर कुशवाहा को टिकट दिलाने की कोशिश की थी। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने यह कहा कि संतोष को चुनाव लड़ना चाहिए। अब वही पार्टी संतोष को ही टिकट से वंचित कर बैठी।

अब लक्ष्य…धमदाहा और लेसी सिंह
सियासी गलियारों में यह भी चर्चा ज़ोरों पर है कि संतोष कुशवाहा अब धमदाहा सीट से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं, जहाँ नीतीश कुमार की सबसे भरोसेमंद मंत्री लेसी सिंह मैदान में होंगी। यानी, मुकाबला होगा “वफादारी बनाम बदलाव” का।
अगर ऐसा होता है तो यह सिर्फ़ सीट की लड़ाई नहीं, बल्कि पूर्णिया में जदयू की पकड़ बनाम राजद के नए समीकरण की जंग होगी।

राजद के लिए फ़ायदा और संदेश
राजद के लिए यह “संतोष का आगमन” सिर्फ़ एक नाम जुड़ने की बात नहीं है, बल्कि यह संदेश भी है कि जदयू के भीतर असंतोष अब खुलकर सामने आने लगा है। तेजस्वी यादव के लिए यह मौका है कि वे सीमांचल में “कुशवाहा मतदाताओं” के बीच अपनी पैठ और मज़बूत करें। वहीं, जदयू के लिए यह संगठनिक झटका भी माना जा रहा है। क्योंकि संतोष कुशवाहा न सिर्फ़ दो बार सांसद रहे हैं, बल्कि पूर्णिया—अररिया—कटिहार के बीच उनका प्रभाव साफ़ तौर पर दिखता है।

राजनीतिक संकेत और आने वाला समय
राजनीति में यह कदम एक बड़ा संदेश है कि “अंदर की नाराज़गी अगर सुनी न जाए, तो बाहर की राह खुल ही जाती है।” अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या राजद इस नए समीकरण का फायदा उठा पाएगी, या यह कदम सिर्फ़ एक “सियासी विरोध” बनकर रह जाएगा।
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पूर्णिया की राजनीति एक बार फिर दिलचस्प मोड़ पर है। जहाँ पहले “कुशवाहा” नाम जदयू की ताकत था, वहीं अब वही नाम राजद के लिए नई उम्मीद बन सकता है। और चुनावी नतीजे यह तय करेंगे कि यह ‘दलबदल’ था या ‘सियासी पलटवार’।