न्यूज स्कैन डेस्क, पटना
भारत निर्वाचन आयोग ने ड्राफ्ट मतदाता सूची के फॉर्मेट में चुपचाप बदलाव कर दिया है। अब मतदाता सेवा पोर्टल पर उपलब्ध पीडीएफ डिजिटल टेक्स्ट-बेस्ड नहीं बल्कि स्कैन की हुई इमेज-बेस्ड कॉपी है। इस बदलाव के चलते नामों की सर्च और डेटा एनालिसिस पहले की तुलना में बेहद कठिन हो गया है। अब तेजस्वी यादव ने भी इस पर सवाल उठाया है। पूर्व में राहुल गांधी ने इसे लेकर आपत्ति की है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने हाल ही में सवाल उठाया था कि चुनाव आयोग डिजिटल वोटर रोल उपलब्ध कराने के बजाय स्कैन की गई इमेज फाइल क्यों दे रहा है। उनका कहना था कि यह बदलाव मतदाताओं के डेटा की स्वतंत्र जांच और पारदर्शिता को प्रभावित करता है। यह बदलाव ऐसे समय में हुआ है जब मतदाता सूची संशोधन को लेकर विपक्ष ने चुनाव आयोग पर पारदर्शिता को सीमित करने के आरोप लगाए हैं।
जानिए क्या बदला है?
पहले पोर्टल से मिलने वाली ड्राफ्ट वोटर लिस्ट टेक्स्ट-बेस्ड पीडीएफ फॉर्मेट में होती थी। इसका फायदा यह था कि कोई भी व्यक्ति आसानी से Ctrl+F जैसे फीचर का इस्तेमाल करके नाम सर्च कर सकता था और यह देख सकता था कि किसी मतदाता का नाम लिस्ट में कितनी बार दर्ज है। अब जो फाइल डाउनलोड हो रही है, वह स्कैन की हुई इमेज-बेस्ड पीडीएफ है। इस बदलाव के कारण अब नाम सर्च करना लगभग असंभव हो गया है। डेटा एनालिसिस और डुप्लीकेट एंट्री की जांच में कई गुना समय लग रहा है।
फाइल का साइज भी पहले से बड़ा है, जिससे डाउनलोड और लोडिंग में ज्यादा समय लग रहा है।
तकनीकी और राजनीतिक बहस
तकनीकी विशेषज्ञों का कहना है कि टेक्स्ट-बेस्ड पीडीएफ को स्कैन-बेस्ड पीडीएफ में बदलना OCR (Optical Character Recognition) की अनुपलब्धता या रोकथाम का संकेत हो सकता है, जिससे डेटा स्क्रैपिंग और स्वत: विश्लेषण मुश्किल हो जाता है। वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम राजनीतिक संवेदनशील समय पर विपक्षी पार्टियों के लिए चुनौती बढ़ा सकता है, क्योंकि डुप्लीकेट नामों या संदिग्ध प्रविष्टियों को साबित करने के लिए ज्यादा संसाधन और समय लगेगा। इस संबंध में अब तक चुनाव आयोग की तरफ से कोई आधिकारिक बयान या स्पष्टीकरण नहीं आया है।