खादी पर मंथन: चरखा सिर्फ प्रतीक नहीं, समाधान भी है!

न्यूज स्कैन रिपाेर्टर, भागलपुर

तिलकामांझी विश्वविद्यालय के गांधी विचार विभाग में चरखा संघ का शताब्दी समारोह 24 सितंबर को एक गंभीर विचार मंच बन गया। विषय था – खादी की चुनौतियां और संभावनाएं।

प्रो. मनोज कुमार ने कहा, खादी सिर्फ कपड़ा नहीं, एक विचार है। वहीं डॉ. अमित रंजन की अध्यक्षता और डॉ. गौतम के संचालन में चला यह संवाद खादी की दशा और दिशा दोनों पर सवाल उठा गया।

किसी ने कहा चरखा आज सिर्फ म्यूजियम की वस्तु बनकर रह गया है, तो किसी ने इसे आध्यात्मिक औद्योगिक क्रांति का औजार बताया। एनुल हुदा ने कहा, गांधी सिर्फ अतीत नहीं, भविष्य दृष्टा थे। चरखा एक प्रतीक है – आत्मनिर्भरता का। पूर्व मंत्री सत्येंद्र जी ने कहा, खादी संस्थाएं सरकारी नीतियों के बोझ और राजनीतिक हस्तक्षेप से दम तोड़ रही हैं। प्रकाश गुप्ता बोले – खादी मिक्सर में नहीं चलती, यह विश्वास की चीज़ है।

सिर्फ 0.5% योगदान
डॉ. मनोज दास ने आंकड़ों के साथ बताया – आज खादी का राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में योगदान सिर्फ 0.5% रह गया है।अंत में प्रो. मनोज कुमार ने कहा अब हमें दस्तावेज़ बनाना होगा, हिसाब मांगना होगा। कर्ज माफ़ करो, कृषि आधारित उद्योग शुरू करो, खादी को फैशन नहीं, मिशन बनाओ। खादी को सिर्फ मॉल में मत बेचो, उसे लोगों के दिल में वापस लाओ – यही था इस छोटे आयोजन का बड़ा संदेश।
सिर्फ चर्चा नहीं, दिशा भी तय हुई। चरखे की धुरी अब भी घुम सकती है – अगर नीयत हो, नीति साथ दे और समाज भागीदार बने।