वोटर लिस्ट रिविजन पर बवाल : संसद से बिहार विधानसभा तक विपक्ष का प्रदर्शन, न्यायिक जांच की मांग तेज

न्यूज़ स्कैन ब्यूरो, पटना/नई दिल्ली

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर विपक्षी दलों ने सरकार और चुनाव आयोग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मंगलवार को इस मुद्दे को लेकर देश की राजधानी दिल्ली से लेकर बिहार विधानसभा तक विरोध प्रदर्शन हुआ। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी समेत तमाम विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि इस पुनरीक्षण के नाम पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और प्रवासी मतदाताओं को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है। बिहार में एसआईआर को लेकर उपजा यह राजनीतिक विवाद अब स्थानीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय बहस का हिस्सा बनता जा रहा है।

दिल्ली में संसद भवन के मकर द्वार पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत अन्य विपक्षी नेताओं ने धरना दिया। उन्होंने इसे लोकतंत्र के खिलाफ एक ‘चयनात्मक शुद्धिकरण अभियान’ बताया। बिहार विधानसभा के बाहर भी राजद, कांग्रेस और वाम दलों के विधायकों ने नारेबाजी की और चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाते हुए उच्चस्तरीय न्यायिक जांच की मांग की।

क्या है SIR और क्यों उठ रहे हैं सवाल?
चुनाव आयोग की ओर से बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया जारी है। इसका उद्देश्य मृत या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम सूची से हटाना और 1 जनवरी 2025 तक 18 वर्ष की आयु पूरी करने वालों को जोड़ना है। लेकिन विपक्ष का कहना है कि इस प्रक्रिया को पारदर्शिता के साथ नहीं, बल्कि पूर्वाग्रह के साथ अंजाम दिया जा रहा है। कांग्रेस और राजद ने आरोप लगाया है कि बड़ी संख्या में गरीब, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक और प्रवासी समुदायों के नाम बिना ठोस आधार के सूची से हटाए जा रहे हैं। उनका कहना है कि यह लोकतांत्रिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।

प्रदर्शन के राजनीतिक मायने
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार जैसे राज्य में जहां वर्गीय और जातीय समीकरण निर्णायक होते हैं, वहां इस तरह की वोटर सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया का असर सीधे तौर पर चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है। विपक्ष को आशंका है कि सत्तारूढ़ दल की सहमति से चुनाव आयोग की यह कवायद की जा रही है, जिससे कमजोर तबकों की राजनीतिक भागीदारी को सीमित किया जा सके। हालांकि, सत्ताधारी एनडीए ने इस मुद्दे पर अब तक कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है। भाजपा और जदयू नेताओं ने इसे चुनाव आयोग का नियमित काम बताते हुए चुप्पी साध रखी है।