नदियों में मछली की कमी से मछुआरों पर संकट, परिधि ने आयोजित की आधुनिक मत्स्य पालन कार्यशाला

न्यूज स्कैन रिपाेर्टर, भागलपुर
गंगा तटवर्ती क्षेत्रों में मछलियों की संख्या में लगातार गिरावट से मछुआरों की रोज़ी-रोटी पर संकट बढ़ता जा रहा है। इसे देखते हुए सामाजिक संस्था परिधि ने रविवार को कला केंद्र, भागलपुर में “आधुनिक मत्स्य पालन कार्यशाला” का आयोजन किया। इस कार्यशाला में महिला और युवा मछुआरों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए परिधि के निदेशक और वरिष्ठ समाजकर्मी उदय ने कहा कि नदियों में मछलियों की संख्या तेजी से घट रही है। उन्होंने कहा, “फ्री फिशिंग अब बेमानी हो गई है। नदियों पर निर्भर परंपरागत मछुआरों की रोज़ी-रोटी पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है।” उदय ने सरकार की मत्स्य नीति की आलोचना करते हुए बताया कि मत्स्य विभाग की योजनाएं केवल खोदे गए तालाबों तक सीमित हैं, जबकि नदियों से जुड़े मछुआरों को तकनीकी प्रशिक्षण और स्थायी विकल्पों की आवश्यकता है।
कार्यक्रम का संचालन राजीव कुमार सिंह ने किया। उन्होंने कहा कि अब मछुआरों को पारंपरिक तरीकों के बजाय केज कल्चर, पेन कल्चर और बायोफ्लक कल्चर जैसी आधुनिक तकनीकों की ओर रुख करना होगा। इन तकनीकों से सीमित संसाधनों में अधिक उत्पादन और कम लागत का अवसर मिलता है।
तकनीकी प्रशिक्षक अंजना प्रसाद और नीरज कुमार वर्मा ने बायोफ्लक तकनीक के बारे में विस्तार से जानकारी दी। यह इज़राइल से विकसित पद्धति है, जिसमें सीमित भूमि पर कृत्रिम टैंक के माध्यम से मछली पालन किया जा सकता है। प्रशिक्षकों ने बताया कि इसे घर की छत, पिछवाड़े की जमीन या नदी किनारे के खाली भूभाग में भी अपनाया जा सकता है। इसमें पानी को बार-बार बदलने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि जैविक तत्व (फ्लक) अमोनिया को सोख लेते हैं और उसी में मछलियों को पोषण मिलता है।
प्रशिक्षकों ने बताया कि चार मीटर व्यास के 15,000 लीटर के बायोफ्लक फिश टैंक में प्रति छमाही 3 क्विंटल से अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है। इससे न्यूनतम 45,000 रुपए का मुनाफा कमाया जा सकता है। इस तकनीक से कैटफिश, तेलापिया, गरय, कबय और सिंघी जैसी मछलियां आसानी से उत्पादित की जा सकती हैं।
कार्यशाला में कहलगांव के कागजी टोला और नवगछिया के मक्खातकिया इलाकों के लगभग 50 प्रतिभागियों ने भाग लिया। प्रतिभागियों ने अनुभव साझा करते हुए कहा कि ऐसी तकनीकी कार्यशालाओं से उन्हें आत्मनिर्भर बनने और घरेलू आय बढ़ाने की नई दिशा मिलती है।
परिधि संस्था ने घोषणा की कि प्रशिक्षण के बाद इच्छुक मछुआरों को ऑन-साइट तकनीकी मार्गदर्शन, उपकरण और विपणन संबंधी जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी। अगले चरण में कहलगांव और नवगछिया में पायलट परियोजना शुरू की जाएगी, ताकि ग्रामीण समुदायों को बायोफ्लक और केज कल्चर तकनीक से जोड़कर आत्मनिर्भरता का नया मॉडल लागू किया जा सके।
कार्यक्रम में सहयोग अजीम प्रेमजी फाउंडेशन का रहा, जबकि धन्यवाद ज्ञापन मनोज कुमार ने प्रस्तुत किया।