सीट बंटवारे पर महागठबंधन में बढ़ी खींचतान, एलायंस में सब ठीक नहीं चल रहा

न्यूज स्कैन ब्यूरो, पटना
बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, महागठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर खटपट बढ़ती जा रही है। राजद और कांग्रेस के बीच बातचीत तो लगातार चल रही है, लेकिन भरोसे का माहौल कमजोर होता दिख रहा है। महागठबंधन का अस्तित्व बचाने के लिए सीट बंटवारे का मसला जल्द सुलझाना जरूरी है। लेकिन कांग्रेस की सख्त दावेदारी ने लालू-तेजस्वी दोनों के लिए यह चुनाव और भी पेचीदा बना दिया है।

कांग्रेस का बदलता तेवर
राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के बाद कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ा है। यही वजह है कि पार्टी अब ज्यादा सीटें ही नहीं, बल्कि “विनिंग सीटों” पर अपनी हिस्सेदारी चाहती है। पार्टी के नेताओं का साफ कहना है कि यह संभव नहीं कि राजद सभी मजबूत सीटें अपने खाते में रख ले और बाकी दलों को कमजोर सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए छोड़ दिया जाए।

पिछली हार से सबक
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, लेकिन वह केवल 19 जीत पाई थी। उस नतीजे ने महागठबंधन की स्थिति कमजोर कर दी थी। कांग्रेस का मानना है कि पिछली बार की वही गलती अब नहीं दोहराई जाएगी। इसलिए अब संख्या के साथ-साथ गुणवत्ता, यानी जीतने योग्य सीटों पर भी बराबरी की बात की जा रही है।

राजद पर दबाव
राजद फिलहाल महागठबंधन का सबसे बड़ा घटक है और नेतृत्व की भूमिका भी उसी के पास है। लेकिन कांग्रेस की नई रणनीति ने लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव को असहज कर दिया है। यदि कांग्रेस अपनी मांगों पर अड़ी रही तो सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय करना मुश्किल हो सकता है।

कांग्रेस का तर्क
2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 9 सीटों पर लड़ा और 3 पर जीत दर्ज की। पप्पू से दूरी रखने वाली कांग्रेस ताजा माहौल में पूर्णिया में पप्पू यादव की जीत को भी पार्टी अपनी उपलब्धि मानती है। पार्टी नेताओं का दावा है कि सम्मानजनक समझौता तभी होगा जब सीटें “बराबरी” के आधार पर बंटेंगी।

आगे की राह
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि महागठबंधन की कई बैठकें हो चुकी हैं और आगे भी बातचीत से रास्ता निकाला जाएगा। हालांकि, सच्चाई यह है कि अगर सीट बंटवारे पर खींचतान बढ़ती रही तो इसका असर पूरे गठबंधन की चुनावी रणनीति पर पड़ेगा।