एनटीपीसी कहलगांव: 48 घंटे से कोयला सप्लाई ठप; उत्पादन पर संकट, बिजली की आपूर्ति पर गहराया खतरा

  • पिछले 48 घंटे से एमजीआर ठप, वेतन न मिलने पर कामगार हड़ताल पर, कोयला आपूर्ति बाधित


प्रदीप विद्रोही, भागलपुर

एनटीपीसी कहलगांव की महत्त्वपूर्ण कोयला आपूर्ति प्रणाली एमजीआर (मेन गेट रेल) पिछले 48 घंटों से पूरी तरह ठप है। इस ठप व्यवस्था के पीछे सबसे बड़ा कारण समय पर वेतन न मिलने के चलते कामगारों द्वारा की गई हड़ताल है।

झारखंड मजदूर कल्याण संघ के अध्यक्ष ने बताया कि बैनर तले एमजीआर में कार्यरत करीब 500 गेट मैन, गैंग मैन, पेट्रोलिंग गार्ड और अन्य श्रमिकों ने कामकाज ठप कर दिया है। सोमवार को हड़ताल की घोषणा करते हुए मजदूरों ने एमजीआर लाइन पर झंडा गाड़कर आंदोलन की शुरुआत कर दी।

प्रबंधन से हुआ था वेतन भुगतान का समझौता

संघ के नेताओं का कहना है कि 22 जुलाई को एनटीपीसी प्रबंधन और श्रमिक संघ के बीच यह स्पष्ट समझौता हुआ था कि सभी कर्मचारियों को हर माह की 10 तारीख तक वेतन भुगतान किया जाएगा। बावजूद इसके, सेक्शन टू के कामगारों को बीते दो माह से वेतन नहीं मिला है।

संघ का आरोप है कि प्रबंधन ने समझौते का उल्लंघन किया है, जिससे कर्मचारियों में भारी आक्रोश है। संघ का यह भी कहना है कि जब तक बकाया वेतन का भुगतान नहीं किया जाएगा और भविष्य में समय पर वेतन देने की लिखित गारंटी नहीं मिलती, तब तक हड़ताल जारी रहेगी।

कोयला आपूर्ति पर पड़ा भारी असर

हड़ताल की वजह से एनटीपीसी कहलगांव को ललमटिया खदानों से आने वाली दैनिक 12 से 15 रैक कोयला आपूर्ति ठप हो गई है। पिछले 48 घंटों में लगभग 25 से 30 रैक कोयला नहीं पहुंच सका, जिससे उत्पादन पर सीधा असर पड़ने की आशंका बढ़ गई है।

समझाने की कोशिशें नाकाम

मंगलवार को एनटीपीसी प्रबंधन के कई अधिकारी और स्थानीय प्रशासन के प्रतिनिधियों ने मौके पर पहुंचकर कामगारों से बातचीत की और समझाने का प्रयास किया, लेकिन बातचीत विफल रही।

बिजली उत्पादन पर खतरे के बादल

यदि हड़ताल और कोयला आपूर्ति में अवरोध यूं ही जारी रहा, तो आने वाले घंटों में एनटीपीसी कहलगांव की बिजली उत्पादन इकाइयों पर सीधा असर पड़ सकता है। बिजली संकट की आशंका को नकारा नहीं जा सकता।

मजदूरों की एकता बनी चुनौती

संघ की आक्रामक रणनीति और मजदूरों की एकजुटता ने इस बार प्रशासन और प्रबंधन दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। अब यह देखना होगा कि एनटीपीसी प्रबंधन मजदूरों की मांगों के प्रति कितना संवेदनशील रुख अपनाता है।