गठबंधन में रहते हुए चिराग का फिर नीतीश पर हमला, सबसे बड़ा सवाल कि क्या 2025 की रणनीति साफ है ?

तय स्क्रिप्ट के तहत आक्रामक हैं चिराग, विरोध की आवाज बन एनडीए में अपना वजन और मोल बढ़ाना चाहते हैं

न्यूज स्कैन डेस्क, पटना
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने एक बार फिर नीतीश सरकार को कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर घेरा है। उन्होंने कहा, “मुझे शर्म आती है कि मैं उस सरकार का हिस्सा हूं जिसमें अपराध नियंत्रण से बाहर हो गया है।” यह बयान उस वक्त आया है जब बिहार में लगातार हत्या, लूट और बलात्कार की घटनाओं पर विपक्ष आक्रामक है। और यह भी ध्यान देने लायक है कि कानून व्यवस्था को लेकर चिराग ने पहली बार एेसा नहीं कहा है। एेसा पहले भी बोल चुके हैं। लेकिन लगातार एेसा बयान इसीलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि वे एनडीए का हिस्सा होते हुए भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोल रहे हैं।

बार-बार एेसा क्यों कर रहे हैं चिराग ?
चिराग पासवान के इस रुख को किसी एक बयान की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। बीते कुछ महीनों में वे कई बार नीतीश कुमार की कार्यशैली, कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक शिथिलता पर सवाल उठा चुके हैं। उदाहरण के तौर पर, मुजफ्फरपुर, सासाराम और पटना में हुई हालिया आपराधिक घटनाओं पर चिराग ने सार्वजनिक मंचों से कहा कि, “बिहार में अपराधियों का मनोबल बढ़ा हुआ है और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है।” विश्लेषकों का मानना है कि चिराग पासवान 2025 विधानसभा चुनाव से पहले खुद को एक स्वतंत्र और निर्णायक नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। गठबंधन की सीमाएं हैं लेकिन उनकी प्राथमिकता खुद वे और उनकी पार्टी है। उनका यह अंदाज उस ‘एकला चलो’ छवि को मजबूत करता है जो उन्होंने 2020 में एलजेपी को अकेले मैदान में उतारकर बनाई थी।

भाजपा वोटरों में अलग पहचान चाहते हैं
नीतीश कुमार पर हमला बोलकर वे भाजपा समर्थक वोटों में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं। साथ ही, नीतीश विरोधी एनडीए वोट बैंक को भी साधने की रणनीति दिख रही है। लेकिन यह सवाल अब लगातार उठने लगा है कि एनडीए के भीतर इस विरोधाभास का असल फायदा किसे मिलेगा? यह फैक्ट है कि नीतीश भले ही एनडीए के संयोजक हों लेकिन बार-बार पाला बदलने की वजह से भाजपा समर्थकों के बीच उनकी विश्वसनीयता कमजोर हुई है। अगर पॉलिटिकल ट्रैक देखें तो एेसा लगता है कि चिराग पासवान भाजपा समर्थक वोटरों के बीच ‘सच्चे एनडीए चेहरा’ के तौर पर खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। विश्लेषक बताते हैं कि भाजपा को भी एक एेसा सहयोगी चाहिए जो नीतीश से अलग खड़ा हो लेकिन एनडीए में बना रहे।

चिराग की आलोचना में जोखिम भी
यह भी सच है कि बीच की लाइन का संतुलन कई बार डगमगा रहा है। चिराग द्वारा बार-बार नीतीश पर हमला करना भाजपा को एक सीमा के बाहर असहज भी कर सकता है क्योंकि फिलहाल सरकार में वह भी साझेदार है। निश्चित तौर पर एेसे मामलों से गठबंधन की एकता पर सवाल उठते हैं और आपसी खींचतान भी बढ़ सकती है। असर सीट शेयरिंग पर भी पड़ सकता है। अगर भाजपा ने चिराग के इन बयानों से खुद को अलग कर लिया तो असमंजस की स्थिति हो सकती है। भाजपा की खामोशी भी राजनीतिक रहस्य को गहरा कर रही है।

एक अलग समीकरण बनाने की कोशिश
चिराग पासवान की राजनीति अब ‘गठबंधन में रहकर स्वतंत्र आवाज़’ की रणनीति पर टिकी है। वे नीतीश विरोध को हथियार बनाकर युवाओं, शहरी वोटरों और दलितों में अपनी पकड़ मजबूत करना चाह रहे हैं। राजनीतिक संकेत साफ़ हैं: चिराग पासवान आने वाले चुनाव में गठबंधन के भीतर रहकर, खुद को ‘अलग और मजबूत’ नेता के तौर पर पेश करना चाहते हैं। इससे वे ना सिर्फ लोजपा को पुनर्जीवित कर रहे हैं, बल्कि भाजपा के भीतर भी एक समीकरण बना रहे हैं। चिराग पासवान का नीतीश कुमार पर बार-बार हमला केवल तात्कालिक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि 2025 बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सोच-समझकर बनाई गई रणनीति का हिस्सा है। वे ‘सत्ता के भीतर, लेकिन असहमति की आवाज़’ बनकर एनडीए में अपना वज़न और मोल दोनों बढ़ाना चाह रहे है।