न्यूज स्कैन ब्यूरो
बिहार सरकार ने तय किया है कि अब राज्य में रजिस्ट्री के साथ ही दाखिल खारिज हो जाएगा। यह एक बड़ी बड़ी प्रशासनिक पहल है। राज्य के राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी ने ऐलान किया कि अब जमीन की रजिस्ट्री के साथ ही दाखिल-खारिज की प्रक्रिया स्वतः पूरी हो जाएगी। यह फैसला राज्य की जटिल भूमि प्रशासन व्यवस्था को सरल बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। लेकिन व्यवहारिक तौर पर इसे जमीन पर लागू करने में कुछ चुनौतियां भी हैं। भूमि विवाद आम लोगों के लिए बड़ी परेशानी का सबब रहा है। राज्य में न्यायालयों में लंबित दीवानी मुकदमों में करीब 60% मुकदमे भूमि विवाद से ही जुड़े हैं। नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के मुताबिक बिहार में दीवानी मामलों की संख्या 10 लाख से ज्यादा हैं। इनमें अधिकांश में दाखिल-खारिज न होने या जाली दस्तावेज की वजह से हैं। ऐसे में राज्य सरकार का यह फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक माना जा रहा है।
कैसी समस्याओं का समाधान होगा
दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) वह प्रक्रिया है जिसके तहत नए खरीदार के नाम पर जमीन के सरकारी अभिलेख अपडेट किए जाते हैं। अब तक रजिस्ट्री के बाद अलग से म्यूटेशन के लिए आवेदन करना पड़ता था। इस प्रक्रिया में काफी समय लगता था। सरकारी सिस्टम में कई तरह की परेशानी भी होती थी। बिना लेन-देन के म्यूटेशन करवाने में मुश्किल होती थी। बिहार में जमीन विवादों और फर्जीवाड़े की जड़ में दाखिल-खारिज प्रक्रिया की पेचीदगियां ही हैं। अक्सर ऐसा होता था कि रजिस्ट्री के बाद भी वर्षों तक दाखिल-खारिज नहीं होता। पुराने मालिक के नाम से ही रिकॉर्ड बने रहते थे। इसका फायदा लेकर कई बार एक ही जमीन को दोबारा बेचने, धोखाधड़ी करने या अवैध कब्जा जमाने जैसे मामले खूब होते थे। इस वजह से कानून व्यवस्था की भी समस्या होती थी। नई व्यवस्था में जैसे ही रजिस्ट्री होगी, रिकॉर्ड स्वतः अपडेट हो जाएगा। इससे खरीदार को अलग से कार्यालयों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे और बिचौलियों की भूमिका स्वतः समाप्त हो जाएगी।
कागजी कामकाज और भ्रष्टाचार पर लगाम
इस बदलाव से सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार और लालफीताशाही पर भी लगाम लगेगी। अब तक दाखिल-खारिज के लिए पटवारी, राजस्व कर्मचारी और अन्य अधिकारियों के स्तर पर कई औपचारिकताएं पूरी करनी होती थीं। इनमें सुविधा शुल्क के नाम पर खूब खेल होता था। नई व्यवस्था से राजस्व अभिलेख का डिजिटलीकरण और पारदर्शिता बढ़ेगी। राजस्व विभाग ने कुछ वर्षों में जमीन संबंधी दस्तावेजों को डिजिटल करने की प्रक्रिया तेज की है।
दूरगामी प्रभाव क्या होंगे
भू-विवादों में कमी : बिहार जैसे राज्य में अदालतों में चल रहे मुकदमों में बड़ी हिस्सेदारी भूमि विवादों की ही है। दाखिल-खारिज के ऑटोमेशन से एेसे विवादों में बड़ी गिरावट आ जाएगी।
कर्ज लेना आसान : म्यूटेशन न होने से किसानों को जमीन के मालिकाना दस्तावेज नहीं मिल पाते थे। इससे उन्हें बैंक से कर्ज लेने में भी परेशानी होती थी। अब दाखिल-खारिज होते ही नया खतियान (खसरा) मिल जाएगा।
भूमि सुधार की दिशा में मजबूती : बिहार में भूमि सुधार लंबे समय से अधर में रहा है। यह कदम जमीनी हक को मजबूत करने के साथ-साथ भूमि बिचौलियों के नेटवर्क को भी खत्म करेगा।
डिजिटल रिकॉर्ड का विस्तार : इससे भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण को और गति मिलेगी। यह भविष्य में जीआईएस मैपिंग और भू-राजस्व संग्रह में मददगार होगा।
लेकिन चुनौतियां भी हैं
निश्चित तौर पर यह व्यवस्था कागज पर अच्छी है, लेकिन इसे जमीन पर लागू करना आसान नहीं होगा। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कई स्थानों पर भूमि रिकॉर्ड अभी भी अपडेट नहीं हैं। ऑनलाइन सिस्टम का तकनीकी आधार कमजोर है। इसके अलावा, कर्मचारियों को तकनीकी प्रशिक्षण देना और सिस्टम को पूरी तरह ऑनलाइन और पारदर्शी रखना भी बड़ी जिम्मेदारी होगी। ग्रामीण इलाकों में लोगों को जागरूक करना भी एक बड़ी चुनौती है।