पश्चिम बंगाल में ममता ने जनता से कहा- किसी को वोटर लिस्ट में छेड़छाड़ नहीं करने दें। कभी खुद ही ममता वोटर लिस्ट में घुसपैठियों के शामिल होने की बात कर रैली निकाला करती थीं।
न्यूज स्कैन डेस्क
चुनाव आयोग ने प्रेस रिलीज कर बताया कि अब तक 35.69 लाख मतदाता वोटर लिस्ट से बाहर कर दिए गए हैं। वोटर लिस्ट की इस छंटनी से बिहार का राजनीतिक माहौल गरमा गया है। अगर राज्य के कुल मतदाताओं के हिसाब से देखें तो यह करीब 4.52 प्रतिशत है। चुनाव आयोग इसे आपरेशन शुद्धिकरण मान रहा है जबकि विपक्ष आयोग की मंशा पर सवाल खड़े कर रहा है। यहां तक कि इसकी तुलना एनआरसी तक से कर दी जा रही है। बिहार के साथ ही पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में भी सियासी पारा गरम हो रहा है। एक समय घुसपैठियों के शामिल होने की बात कर सड़क पर वोटर लिस्ट में संशोधन के लिए संघर्ष करने वाली ममता बनर्जी आज इसके विरोध में झंडा उठाए हैं।
आयोग के अनुसार इस कार्रवाई का मकसद मृत मतदाताओं, स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके लोगों और डुप्लिकेट नामों को हटाकर मतदाता सूची को पारदर्शी बनाना है। अब तक के आंकड़ों के मुताबिक 1.59% मतदाता मृत पाए गए हैं, 2.2% लोगों ने स्थायी निवास बदला है और 0.73% के नाम एक से अधिक स्थानों पर दर्ज मिले हैं। बचे हुए ग्यारह दिन चुनाव आयोग के लिए भी अग्निपरीक्षा है। चुनाव आयोग ने फिलहाल कुल 88.18% मतदाताओं की जानकारी जुटा ली है। शेष 11.82% मतदाताओं को अगले 11 दिन का समय दिया गया है कि वे अपना नाम सही कराने के लिए जरूरी फॉर्म जमा करें। आयोग ने दावा किया है कि कोई भी योग्य मतदाता सूची से बाहर नहीं रहेगा, बशर्ते वह समय पर सही दस्तावेज़ प्रस्तुत कर दे।

विपक्षी दलों का आरोप है कि इस छंटनी की आड़ में गरीब, प्रवासी और अल्पसंख्यक समुदायों के वैध मतदाताओं के नाम भी लिस्ट से गायब किए जा रहे हैं। कुछ जगहों पर ग्रामीण इलाकों में बीएलओ के कामकाज पर सवाल उठे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि उचित जांच के बिना ही नाम हटाए जा रहे हैं। कई जगह निर्धारित प्रक्रिया भी पूरी नहीं किए जाने के मामले सामने आए हैं। ग्रामीण और दूरदराज़ के इलाकों में काम कर रहे बीएलओ ने माना है कि लोगों की अनुपस्थिति, प्रवासन और दस्तावेज़ों की कमी के कारण सही जानकारी जुटाना चुनौतीपूर्ण रहा है। कई जगह किसी और रिश्तेदार ने किसी और के बदले ही फॉर्म भरा और दस्तखत कर दिए। एेसी स्थिति में डेटा की प्रमाणिकता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
वहीं दूसरी तरफ विपक्षी पार्टिया इसकी तुलना एनआरसी से कर रही है और कहा जा रहा है कि गरीब, दलित और अल्पसंख्यक तबके के लाखों वोटरों के नाम जानबूझकर काटे जा रहे हैं ताकि सत्ता पक्ष को फायदा हो। विपक्ष का कहना है कि इस मुद्दे को सड़क से लेकर सदन तक उठाएंगे। यह भी कहा जा रहा है कि कई जगह बिना नोटिस दिए ही नाम काटे जा रहे हैं। इसे रोकना चाहिए। राजद के साथ लेफ्ट ने भी सुर में सुर मिलाया और आयोग की मंशा पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।
सत्ता पक्ष वोटर लिस्ट शुद्धिकरण को एक नियमित और आवश्यक प्रक्रिया बता रहा है। कहा जा रहा है कि इसे लेकर अनावश्यक भ्रम पैदा किया जा रहा है। उद्देश्य पारदर्शी चुनाव कराना है न कि किसी वर्ग विशेष को वंचित करना। हर राज्य में समय-समय पर मतदाता सूची अपडेट होती है। इसमें राजनीति ढूंढना गलत है। अगर किसी को आपत्ति है तो आयोग में आपत्ति करें। हालांकि आयोग इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए जरूरी मानता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी आपत्ति को सही नहीं माना है और इसे जारी रखा। इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कुल 9 याचिकाएं दायर की गईं थी।
पश्चिम बंगाल में ममता की आशंका
बिहार के इस प्रकरण को लेकर पड़ोसी राज्य की सुप्रीमो ममता बनर्जी सबसे ज्यादा परेशान हैं। उन्होंने कहा है कि बिहार तो बहाना है। अगला निशाना तो पश्चिम बंगाल ही है। ममता ने जनता से अपील की है और कहा है कि वोटर लिस्ट में छेड़छाड़ किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करें। ये वही ममता बनर्जी हैं जो पूर्व में खुद ही वोटर लिस्ट संशोधन की मांग करती थीं क्योंकि उनका स्पष्ट मानना था कि बड़ी संख्या में घुसपैठियों ने पैठ बना ली है। उस वक्त लेफ्ट की सरकार थी। ममता ने तो एक वक्त वोटर लिस्ट में गड़बड़ी को लेकर बंगाल में रैली भी निकाली थी। आज मुर्शिदाबाद, वीरभूमि, नादिया, नार्थ 24 परगना, कूच बिहार, उत्तर दिनाजपुर, मालदा और दक्षिण 24 परगना में आबादी से ज्यादा आधार कार्ड बन चुके हैं। बिहार के सीमांचल की भी यही स्थिति है।
विशेषज्ञों की मानें तो जमीनी स्तर पर इसे पारदर्शी बनाना सबसे बड़ी चुनौती है। वोटर लिस्ट से किसी का नाम काटना तब तक तार्किक है जब तक यह निष्पक्ष और त्रुटिहीन हो। लेकिन बिहार जैसे राज्य में जहां बड़ी संख्या में लोग बाहर रहते हैं और साक्षरता की भी कमी है वहां प्रक्रिया में जरा सी चूक विवाद को जन्म दे सकती है।
