- मिथिलांचल की परंपरा, स्त्रीशक्ति की झलक और लोकसंस्कृति की सुगंध से महक उठा श्रावण
न्यूज स्कैन ब्यूरो, सुपौल
श्रावण मास की पुण्य बेला में मिथिलांचल की नवविवाहिताओं ने अपने पति की दीर्घायु और वैवाहिक सुख-शांति के लिए मधुश्रावणी व्रत का पालन किया। रविवार को पारंपरिक हर्ष और आस्था के साथ इस दो सप्ताह तक चलने वाले पर्व का समापन हुआ। गांव की गलियों में गूंजते लोकगीत, महिलाओं की हरी-लाल पारंपरिक साज-सज्जा, और अग्नि परीक्षा की प्रतीक रस्म “शीतल टेमी” ने इस दिन को बेहद खास बना दिया।
व्रत की परंपरा और आध्यात्मिकता
13 दिनों तक महिलाएं शिव-पार्वती, विषहरी और बिहुला की लोक कथाएं सुनती रहीं और विशेष पूजा-अर्चना करती रहीं। पूजा में प्रयुक्त रंगीन चित्रकारी, फूलों से सजी थालियां और मिट्टी से बनी नाग-नागिन की मूर्तियां इस पर्व की पहचान बन गईं।
जब महिलाएं बनीं पुरोहित
पूरे व्रत काल के दौरान पूजा कराने वाली पुरोहित महिलाएं ही रहीं — यह स्त्रीशक्ति और परंपरा के अद्भुत समागम को दर्शाता है।
लोकगीतों ने जोड़ी संस्कृति की डोर
“माय के अंगना बिआह भेल हे…” जैसे पारंपरिक गीतों की स्वर लहरियों ने पूरे गांव को भावनात्मक वातावरण से भर दिया।