- किशनगंज में संथारा संकल्प से भावुक हुआ जैन समाज, संतोषचंद बने प्रेरणा
न्यूज स्कैन ब्यूरो, किशनगंज
किशनगंज में जैन धर्म के अनुयायी संतोषचंद श्यामसुखा ने एक अत्यंत कठिन और दुर्लभ धार्मिक निर्णय लेते हुए संथारा (संलेखना) का संकल्प लिया है। उन्होंने आजीवन भोजन और जल का त्याग कर मोक्ष की ओर अग्रसर होने का मार्ग चुना है। यह निर्णय तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाश्रमणजी की अनुमति प्राप्त होने के बाद लिया गया।
इस अवसर पर समणी निर्देशिका भावित प्रज्ञाजी, समणी संघ प्रज्ञाजी और समणी मुकुल प्रज्ञाजी की पावन उपस्थिति में समाज और परिजनों के बीच विधिपूर्वक संथारा का संकल्प दिलवाया गया।
क्या है संथारा?
संथारा (या संलेखना) जैन धर्म की एक गहन और आत्मिक साधना है, जिसमें व्यक्ति स्वेच्छा से मृत्यु का वरण करते हुए भोजन और जल का पूर्ण त्याग करता है। इसका उद्देश्य आत्मा की शुद्धि, कर्मों का क्षय और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होता है।
यह परंपरा तब अपनाई जाती है जब किसी को लगता है कि उसका सांसारिक जीवन पूर्ण हो चुका है या वह असाध्य रोग से पीड़ित है। इस प्रथा में व्यक्ति तपस्या, ध्यान और जैन सिद्धांतों के गहन अनुशासन के साथ धीरे-धीरे शरीर त्याग करता है।
शुद्ध आत्मा की ओर एक कठिन यात्रा
संतोषचंद श्यामसुखा का यह निर्णय पूरी तरह स्वेच्छा से लिया गया है, जो कि जैन दर्शन की आत्म-अनुशासन की पराकाष्ठा है। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम चरण में प्रवेश करते हुए इस मार्ग को अपनाया है, ताकि वे आध्यात्मिक शांति, आत्म-संयम और मोक्ष की प्राप्ति कर सकें।
इस प्रथा में व्यक्ति धीरे-धीरे भोजन और जल छोड़ते हुए, केवल ध्यान, जप और प्रार्थना के सहारे अपने शरीर का त्याग करता है। यह प्रक्रिया जैन आचार्यों की देखरेख में होती है और समाज द्वारा अत्यंत सम्मानजनक मानी जाती है।
संथारा: मोक्ष के पथ का वैकल्पिक मार्ग
जैन धर्म के अनुसार, संथारा कोई अनिवार्यता नहीं, बल्कि वैकल्पिक तपस्या है जो उन लोगों के लिए है जो मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से इसके लिए तैयार होते हैं। यह गृहस्थ जीवन की समाप्ति का प्रतीक भी है, जहां व्यक्ति सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आत्मा की मुक्ति की ओर अग्रसर होता है।
समाज में शांति और श्रद्धा का वातावरण
संतोषचंद जी के इस संकल्प की जानकारी मिलते ही किशनगंज के जैन समाज में गंभीरता, शांति और श्रद्धा का माहौल बन गया है। समाज के वरिष्ठों और युवाओं ने उनके साहस और धर्म के प्रति निष्ठा को प्रेरणादायक बताया।