नाटक के शिखर पुरुष को सलाम: कलाकेंद्र में रतन थियम को श्रद्धांजलि, बोले रंगकर्मी – “वे रंगमंच का एक क़िला थे, जो अब ढह गया”

न्यूज स्कैन ब्यूरो, भागलपुर

भारतीय रंगमंच को नई ऊँचाइयाँ देने वाले पद्मश्री रतन थियम के निधन पर कला केंद्र में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में रंगमंच से जुड़े कलाकारों, साहित्यकारों और शोधकर्ताओं ने उन्हें याद किया और कहा – “वो सिर्फ निर्देशक नहीं थे, बल्कि रंगमंच को सामाजिक चेतना का माध्यम बनाने वाले एक आंदोलन थे।”

“नाटक सिर्फ मनोरंजन नहीं, समाज का आईना है”

सभा की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार डॉ. योगेंद्र ने कहा –“रतन थियम का जाना एक युग का अंत है। उन्होंने मणिपुरी संस्कृति को मंच पर वैश्विक पहचान दिलाई। उनकी शवयात्रा में उमड़ा मणिपुर का जनसैलाब इस बात का प्रमाण है कि वे जननायक थे।”

उदय ने कहा – “रंगकर्मी की भाषा प्रतिरोध की होनी चाहिए, रतन थियम इसका जीता-जागता उदाहरण थे। आज पूरे देश के रंगकर्मी उन्हें याद कर रहे हैं, ये खुद में बड़ी बात है।”

“उन्होंने पद्मश्री लौटा दिया, पर अपनी आत्मा नहीं”

इप्टा के संजीव कुमार दीपू ने कहा –“आज जब राष्ट्रीय पुरस्कार पाने की होड़ है, रतन थियम ने मणिपुर की हालात पर आवाज़ उठाने के लिए अपना पद्मश्री लौटा दिया। यह उनकी प्रतिबद्धता और ईमानदारी का प्रतीक है।”

कलाकेंद्र के प्राचार्य राजीव ने कहा –“उनका रंगकर्म मनोरंजन नहीं, परिवर्तन का माध्यम था। नाट्यकर्म को उन्होंने जन-संवेदना और सामाजिक चेतना से जोड़ा।”

कपिलदेव रंग ने उन्हें याद करते हुए कहा –“रंगकर्मी को व्यापक ज्ञान होना चाहिए, यह थियम जी से सीखा जा सकता है। उनका जाना नाटक के एक स्तंभ का ढहना है।”

“वो चले गए, पर उनका रंग जिंदा रहेगा”

अलका सिंह ने कहा – “रतन थियम जैसे कलाकार शरीर से नहीं जाते, वे मंच पर, शब्दों में और दर्शकों के दिलों में जीवित रहते हैं।”
सुषमा ने कहा – “कला को प्रतिरोध का माध्यम बनाना ही उनका असली योगदान था।” सभा में श्वेता शंकर, एकराम हुसैन साद, ललन, अदिति कुमारी, दिव्या, सूरज कुमार सहित कई युवा कलाकारों ने भी अपने विचार साझा किए।