न्यूज स्कैन रिपाेर्टर, भागलपुर
कचहरी परिसर स्थित पेंशनर समाज हॉल में “आजीविका बचाओ सम्मेलन” का आयोजन गंगा मुक्ति आंदोलन, जल श्रमिक संघ और बिहार प्रदेश मत्स्यजीवी जल श्रमिक संघ के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. योगेंद्र ने की और संचालन जल श्रमिक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष योगेंद्र सहनी ने किया।
गंगा मुक्ति आंदोलन के समन्वयक रामशरण ने कहा कि “हमारा संघर्ष प्राकृतिक संसाधनों पर समुदाय के अधिकार के लिए है। ‘जंगल, पानी और जमीन – हो जनता के अधीन’ के नारे के साथ हमने गंगा से सदियों पुरानी पानीदारी प्रथा को खत्म कराया।”
कार्यक्रम में वक्ताओं ने आरोप लगाया कि सरकार डॉल्फिन अभयारण्य का हवाला देकर पारंपरिक मछुआरों की आजीविका छीनने पर तुली है। उदय, जो आंदोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं, ने कहा कि “वर्तमान सरकार की नीतियाँ कॉरपोरेट और सामंती हितों को साध रही हैं, जिससे मछुआरों का जीवन संकट में आ गया है।”

आंदोलन के संयोजक सुनील सहनी ने आरोप लगाया कि वन विभाग, सरकार की शह पर निःशुल्क शिकारमाही अधिकार को छीनने की साजिश कर रहा है। डॉ. योगेंद्र ने सवाल उठाया कि अगर सभी नदियों में डॉल्फिन हैं तो क्या सरकार सभी नदियों को सेंक्चुरी बनाएगी और मछुआरों को खदेड़ेगी?
गौतम मल्लाह ने कहा कि “सरकार तालाबों और कृत्रिम मत्स्य श्रोतों को बढ़ावा देकर बड़ी कंपनियों को लाभ पहुंचा रही है जबकि नदियों में स्वाभाविक मत्स्य उत्पादन को खत्म किया जा रहा है।”
सम्मेलन में एक प्रस्ताव पारित कर कहा गया कि यदि सरकार ने फ्री फिशिंग राइट बहाल नहीं किया, तो मछुआरा समाज आगामी चुनाव में एनडीए को सबक सिखाएगा। साथ ही, विशेष वोटर पुनरीक्षण अभियान में नाम छूटने की चिंता भी जताई गई और इस पर व्यापक जनजागरण का निर्णय लिया गया।

इस सम्मेलन में कहलगांव, सुल्तानगंज, नवगछिया, नाथनगर, सबौर और भागलपुर के सैकड़ों मछुआरों ने भाग लिया। कार्यक्रम में रामशरण, डॉ. योगेंद्र, उदय, राहुल, योगेंद्र सहनी, मालती देवी, सुनील सहनी, गौतम मल्लाह, मनोज कुमार सहनी, अनिरुद्ध, रोहित कुमार, नरेश महलदार, बिरजू सहनी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे।