स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों और वर्तमान परिप्रेक्ष्य पर कला केंद्र में सेमिनार, वैचारिक क्रांति की जरूरत पर जोर

न्यूज स्कैन रिपाेर्टर, भागलपुर
राष्ट्र सेवा दल के तत्वावधान में मंगलवार को कला केंद्र, भागलपुर में “स्वतंत्रता संग्राम के मूल्य और वर्तमान परिप्रेक्ष्य” विषयक एक सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. डॉ. मनोज कुमार ने की, जबकि मंच संचालन उदय ने किया।

सेमिनार में वक्ताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय पैदा हुए नागरिकता, समानता, स्वाभिमान और जनभागीदारी जैसे मूल्यों को याद करते हुए कहा कि आज इन मूल्यों को दरकिनार किया जा रहा है।
प्रो. डॉ. योगेंद्र ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन ने आम लोगों में समानता और सम्मान की भूख जगाई। आरएसएस और हिंदू महासभा जैसे संगठनों ने इन मूल्यों को कभी स्वीकार नहीं किया, यहां तक कि तिरंगे को भी नहीं अपनाया।

शाहीद कमाल ने कहा कि आजादी के आंदोलन के मूल में यह भावना थी कि देश की सत्ता दलित, गरीब, पिछड़ों तक पहुंचे। वोट देने का अधिकार भी इसी विचार की उपज थी। गांधी के आंदोलन से यह भावना निकली कि नागरिक होना हर जाति, धर्म, क्षेत्र के व्यक्ति का अधिकार है।

उदय ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के मूल्य हमारे संविधान में शामिल किए गए। यह आंदोलन तब राष्ट्रीय बना जब इसमें महिला, पुरुष, दलित, पिछड़े, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बिहारी, मराठी, मणिपुरी, कन्नड़ सभी शामिल हुए। यही भाईचारा, समानता और लोकतंत्र की बुनियाद बनी।

मनोज मीता ने कहा कि स्वतंत्रता का मतलब हर व्यक्ति को अपनी पसंद का जीवन जीने का हक है—क्या पहनना, क्या खाना, यह उसका निजी अधिकार है। संस्कृति के नाम पर किसी पर कुछ थोपना मूल अधिकारों का हनन है। उन्होंने वैचारिक स्तर पर नए आंदोलन की जरूरत जताई।

डॉ. अलका सिंह ने कहा कि आज के समय में मूल्य आधारित राजनीति करने वाले नेता गिने-चुने बचे हैं। अब कोई मां अपने बेटे से नहीं कहती कि वह किसी सच्चे नेता जैसा बने।
महेंद्र यादव ने कहा कि जो मूल्य आधारित राजनीति करता है, वही सबसे बड़ा खतरा माना जाता है—इसका उदाहरण महात्मा गांधी की हत्या है।

अर्जुन शर्मा ने कहा कि आज धर्म के नाम पर भीड़ हत्या (मॉब लिंचिंग) कर रही है और सत्ता उन्हें संरक्षण दे रही है। सार्थक भारत ने शराब वितरण नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार की नीति से दलित और पिछड़े वर्ग बर्बाद हो रहे हैं—क्या यह एक साजिश है?

स्मिता कुमारी ने कहा कि सरकार की कल्याणकारी भावना समाप्त हो रही है। नीरज कुमार ने कहा कि आज के दौर में नागरिकता का संकट है। गरीब और दलितों के नाम मतदाता सूची से गायब हैं। यह लोकतंत्र से बाहर करने की सोची-समझी रणनीति है।
अभय कुमार अकेला ने युवाओं को जागरूक करने पर बल दिया।

मुख्य वक्ता अजीत शिंदे (राष्ट्र सेवा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष) ने कहा कि जब भारतीय छात्र विदेशों में समाजवाद पढ़ते थे, तो वही मूल्य भारत में लागू करने का सपना लेकर लौटते थे। यही मूल्य आजादी की लड़ाई का हिस्सा बने।

समापन भाषण में अध्यक्ष डॉ. मनोज ने कहा कि मूल्य कभी कमजोर नहीं होते, उन्हें आगे ले जाना होता है। यह लड़ाई विचारों की है। जो लोग एजेंडा तय करते हैं, वही समाज की चेतना गढ़ते हैं। अगर सामंती सोच वाले सत्ता में रहेंगे तो लोगों की सोच वैसी ही बनेगी। उन्होंने वैचारिक क्रांति की जरूरत पर विशेष बल दिया।

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से डॉ. मनोज कुमार, डॉ. योगेंद्र, उज्जवल कुमार घोष, अलका सिंह, अभय कुमार अकेला (मुंगेर), सुरेंद्र कुमार (समस्तीपुर), उदय, राहुल, अभिजीत शंकर, गौतम मल्लाह, मनोज मीता, संजय कुमार, महेंद्र यादव, यास्मीन बानो, योगेंद्र साहनी, नंदलाल कुमार, अर्जुन शर्मा, रविंद्र कुमार सिंह, मिथिलेश आदि मौजूद थे।