
न्यूज़ स्कैन ब्यूरो, भागलपुर
जब सरकारें शिक्षा को लेकर उदासीन हो जाती हैं, तब समाज के संवेदनशील लोग ही बदलाव की मशाल थामते हैं। ऐसा ही एक संकल्प लिया है टेक्नो मिशन इंटरनेशनल स्कूल, भागलपुर के निदेशक और शिक्षाविद अंशु सिंह ने। वे कहते हैं, बिहार जैसे राज्य के लिए शिक्षा ही सबसे बड़ी ताकत है। बिहार में प्राइवेट विश्वविद्यालय बनें ताकि बच्चे पढ़ने के लिए बाहर जाकर परेशान नहीं हों। इसीलिए अब “शिक्षा के लिए भिक्षाटन” करने का निर्णय लिया है।
बिहार में विश्वविद्यालयों की कमी और अंशु सिंह की पीड़ा
देश में जहाँ 800 से अधिक विश्वविद्यालय हैं, वहीं बिहार में मात्र 7 निजी विश्वविद्यालय हैं। यह आँकड़ा केवल एक संख्या नहीं, बल्कि उस शैक्षणिक खालीपन का प्रतीक है जिससे बिहार का छात्र वर्ग लगातार जूझ रहा है। अंशु सिंह कहते हैं, “बिहार के बच्चे पढ़ाई के लिए बाहर जाते हैं। आर्थिक संकट झेलते हैं, भाषा और संस्कृति भी एक चुनौती रहती है। यह एक अलग तरह की मानसिक प्रताड़ना है। विडंबना यह कि हमारा करोड़ों रुपये का संसाधन बाहर चला जाता है।”
वे कहते हैं कि बिहार में हर गली-मुहल्ले में मॉल खुल रहे हैं, लेकिन विश्वविद्यालय जैसे शिक्षा के बड़े संस्थान बनाने की कोई गंभीर कोशिश नहीं हो रही। पंडित मदन मोहन मालवीय के आदर्शों को आत्मसात करते हुए अंशु सिंह ने ऐलान किया है कि वे अपने जीवनकाल में 100 विश्वविद्यालय बनवाने का लक्ष्य लेकर चलेंगे। यह कोई सरकारी घोषणा नहीं, बल्कि जनसहयोग आधारित एक जनांदोलन होगा। इसके लिए वे 5 सितंबर 2025 (शिक्षक दिवस) से ‘भिक्षाटन यात्रा’ शुरू करेंगे। इसमें वे लोगों से विश्वविद्यालय निर्माण हेतु सहयोग मांगेंगे।
वे कहते हैं कि भिक्षाटन एक साधना है, भीख नहीं है। यह पहल केवल एक आर्थिक सहयोग अभियान नहीं, बल्कि शिक्षा के प्रति सामाजिक चेतना जगाने का प्रयास है। अंशु सिंह का यह संकल्प “भीख नहीं, भागीदारी” की भावना के तहत है। वे पूरे बिहार में गाँव-शहर घूम-घूमकर जनता से अपील करेंगे कि वे इस पवित्र मिशन में भागीदार बनें। इस मुहिम की शुरुआत 5 सितंबर को भागलपुर से होगी और फिर यह पूरे राज्य में फैलाई जाएगी।