न्यूज स्कैन ब्यूरो, कैमूर
जिले के पहाड़ी क्षेत्र में रह रहे आदिवासियों जनजातियों के द्वारा अपने ज्वलंत मुद्दों को लेकर भारी संख्या में स्त्री-पुरुष जिला मुख्यालय भभुआ पहुँचे, जहाँ समाहरणालय भभुआ स्थित लिच्छवी भवन के पास अनिश्चितकालीन धरना दिया, भीड़ इतनी काफी थी कि मुख्य सड़क को जाम कर दिया, तो अधिकारी दूसरे रास्ते से आते जाते दिखे, इस दौरान धरने में 8 सूत्री मांगो को लेकर आवाज उठाया, जिसमें अधौरा प्रखंड के देवरी अनुसूचित जनजाति आवासीय विद्यालय के निष्कासित छात्रों को पुनः विद्यालय में बुलाकर पठन-पाठन करने, अनुसूचित जनजाति विद्यालय का नाम बदलकर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर किया गया है उस नाम को बदलकर पुनः आदिवासी राजकीय अनुसूचित जनजाति आवासीय विद्यालय करने, खरवार जाति का प्रमाण पत्र बिना खतियान के निर्गत नहीं करने, छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 लागू करने, वन अधिकार अधिनियम 2006 को लागू करने, अनुसूचित जनजाति आयोग में असंवैधानिक ढंग से गैर आदिवासी को रखने पर उसे तत्काल हटाने, जिला मुख्यालय में आदिवासी कल्याण छात्रावास का निर्माण कराया जाने एवं जनजाति प्रखंड अधौरा में जनजाति संस्कृति कला भवन का निर्माण करने की मांग की गई।
शिकायत करने पर 3 छात्रों को निकालने का आरोप
धरना दे रहे लोगों ने आरोप लगाया कि अधौरा प्रखंड के देवरी अनुसूचित जनजाति आवासीय विद्यालय में अनुसूचित जनजाति के बच्चों के द्वारा मूलभूत सुविधाओं बिजली पानी एवं सुविधाओं के शिकायत करने पर तीन बच्चों को निष्कासित कर दिया गया जिन्हें पुनः विद्यालय बुलाया जाए।
सरकार का फैसला आदिवासियों के अस्तित्व पर खतरा
समाहरणालय के पास आदिवासी विकास मोर्चा कैमूर के बैनर तले आदिवासियों का अनिश्चितकालीन विशाल धरना दिया गया, जिसमें आदिवासियों ने सरकार के आदेश से अपने अस्तित्व को खतरा बताया, उन्होंने कहा कि सरकार के 5 अगस्त 2025 को कार्मिक विभाग के मुख्य सचिव के द्वारा आदेश दिया गया की जनजाति खरवार का जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने के लिए खतियान की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन खरवार जाति का प्रमाण पत्र के लिए खतियान की मांग अवश्य की जाए क्योंकि ऐसे बहुत से लोग फर्जी तरीके से जाति प्रमाण पत्र बनवाकर आदिवासियों के हाकमरी करेंगे, हम मांग करते हैं कि बिना खतियान के कोई भी खरवार जाति का प्रमाण पत्र नहीं बनाई जाए।
वहीं, उन्होंने कहा कि सरकार के द्वारा मतदाता विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण के दौरान वन अधिकार अधिनियम का कागजात की मांग की जा रही है जबकि कैमूर जिले में वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत किसी को कागजात नहीं दी गई है जिसे जल्द से जल्द लागू किया जाए और कागजात दी जाए जिससे आदिवासियों का अस्तित्व बचाए जा सके । इस दौरान कई आदिवासी नेताओं के द्वारा नेतृत्व किया गया।

















