पप्पू-कांग्रेस मिलन राजद के लिए अवसर भी है और चुनौती भी

पप्पू-कांग्रेस गठबंधन कोसी-सीमांचल में गेमचेंजर हो सकता है। सीट शेयरिंग में राजद ठंडे दिमाग से काम ले तो बढ़ सकती है भाजपा की मुश्किलें।

न्यूज स्कैन डेस्क
सोमवार को नई दिल्ली स्थित इंदिरा भवन में बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस की विशेष बैठक थी। खास यह कि पहली बार इसमें पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव को बुलाया गया था। बैठक के बाद पप्पू के बयान ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि राजेश राम और तारीक अनवर भी महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री चेहरा हो सकते हैं। ज्ञात हो कि महागठबंधन ने सीएम फेस के रूप में पूर्व से ही तेजस्वी को सामने रखा है। पप्पू के बयान के बाद राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि, ‘सोनिया, राहुल, खड़गे या कांग्रेस का प्रभारी कोई बात कहे तो मतलब है। तेजस्वी ही महागठबंधन का चेहरा थे और रहेंगे।’ दिल्ली में कांग्रेस की बैठक में पप्पू का शामिल होना बिहार की राजनीति के लिहाज से खास है। बैठक में तमाम राष्ट्रीय चेहरों के अलावा बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम भी मौजूद थे। यानी स्पष्ट है कि विपक्षी खेमे में नए समीकरण आकार ले रहे हैं।
यह समझना जरूरी है कि यह सियासी घटनाक्रम यूं ही नहीं है। इसके गहरे राजनीतिक मायने हैं। बिहार में राहुल व तेजस्वी के साथ पप्पू को जगह नहीं मिलने के एक सप्ताह के अंदर ही यह बैठक है। कांग्रेस के साथ इकतरफा प्रेम को लेकर पप्पू सवालों को झेलते रहे हैं लेकिन इस बार वे आधिकारिक तौर पर बैठक का हिस्सा थे। पटना में ‘धक्का प्रकरण’ के बाद भी तेजस्वी को लेकर पप्पू काफी उग्र दिखे थे। तेजस्वी के साथ कभी उनकी कैमेस्ट्री मिली ही नहीं। अब बात कांग्रेस की करें तो तथ्य यह है कि कांग्रेस को भी बिहार में एक ‘फील्ड फेस’ की जरूरत है और पप्पू को भी कांग्रेस की। राजद के लिए यह पचाना मुश्किल तो है लेकिन अगर वह पचा लेती है तो यह महागठबंधन को नई ऊर्जा प्रदान करने वाला होगा।


सीटों में हिस्सेदारी पर मजबूत होगा कांग्रेस का दावा
बिहार की राजनीति में बाहुबली की छवि रखने वाले पप्पू का कोसी-सीमांचल और मिथिलांचल में व्यक्तिगत प्रभाव है। 1990 के दशक से अब तक व आरजेडी, सपा और निर्दलीय के तौर पर संसद पहुंचते रहे हैं। बिहार में कांग्रेस काफी कमजोर है और ज्यादातर सीटें उसे आरजेडी के भरोसे ही मिलती है। ओबीसी वोटर्स के अलावा मुस्लिमों के बीच भी पप्पू की मजबूत पकड़ है। पप्पू अगर कांग्रेस के साथ आते हैं तो उसे सीटों में ज्यादातर हिस्सेदारी मिल सकती है। एेसी स्थिति में आरजेडी को कांग्रेस के लिए ज्यादा सीट छोड़ना पड़ सकता है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इससे विपक्षी वोट बैंक में बिखराव कम होगा और बीजेपी के खिलाफ वोट ट्रांसफर मैकेनिज्म भी मजबूत होगा। बीजेपी भी इस बात को समझ रही है कि अगर पप्पू कांग्रेस के साथ आते हैं तो सीमांचल में मुश्किल होगी। इससे महागठबंधन को स्पष्ट तौर पर फायदा मिलेगा।
सीमांचल में 10-15 सीटों पर पप्पू ने पहुंचाया था नुकसान
2020 के विधानसभा चुनाव में पप्पू यादव ने 20-30 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। सीमांचल की 10-15 सीटों पर उन्होंने महागठबंधन को सीधा नुकसान पहुंचाया। इसका स्पष्ट फायदा एनडीए को हुआ। कोसी-सीमांचल व मिथिलांचल की करीब 50 सीटों में से 15-20 सीटों पर पप्पू यादव का प्रभाव है। 2020 में सीमांचल में 5 सीट जीतकर ओवैसी ने मुस्लिम वोटरों में अपनी जगह बनाई थी लेकिन अगर पप्पू-कांग्रेस की जोड़ी बनती है तो ये वोट बैंक महागठबंधन के पाले में चला जाएगा। कांग्रेस जानती है कि अकेले दम पर वह बिहार में ग्राउंड पर कोई पकड़ नहीं रखती। मुस्लिम-यादव वोट बैंक के हिसाब से उसे पप्पू यादव जैसा जमीनी नेता चाहिए। पप्पू यादव भी ‘नेशनल स्पेस’ चाह रहे हैं। राहुल गांधी का भी फोकस बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में माइक्रो अलायंस बनाने का है। फैक्ट है कि पप्पू का कांग्रेस के साथ आना कोसी-सीमांचल में गेमचेंजर होगा। महागठबंधन अगर ठंडे दिमाग से काम ले और समझदारी से सीट शेयरिंग कर ले तो भाजपा की मुश्किल बढ़ेगी। सच यह भी है कि पप्पू के लिए भी यही एकमात्र मजबूत रास्ता भी है। वहीं सच यह भी है कि बिना आरजेडी को विश्वास में लिए कांग्रेस का एेसा कदम महागठबंधन में घमासान को बढ़ाने वाला हो सकता है। अब आने वाला समय बताएगा कि कोसी-सीमांचल में किसका सिक्का चलता है… महागठबंधन की एकजुटता का या एनडीए के डिवाइड एंड रूल का।