धक्के की राजनीति… पप्पू का प्रेम और चुप रह जाने की कांग्रेस की मजबूरी को समझिए… बिहार में कांग्रेस को राजद की बैसाखी का ही सहारा

न्यूज स्कैन डेस्क
पटना में स्पष्ट तौर पर कांग्रेस की रैली में पप्पू यादव की उपेक्षा हुई। कैमरे में सब स्पष्ट दिख रहा है। खुद पप्पू कहते रहे, ‘धक्का तो लगा लेकिन अपमान नहीं हुआ।’ खुद पर संयम रखते हुए यह संतुलित प्रतिक्रिया पप्पू के स्वभाव के विपरीत है। इसके सियासी मायने हैं। वे खुद को हमेशा कांग्रेस का बताते रहे हैं लेकिन कांग्रेस ने खुलकर कभी उन्हें अपना माना ही नहीं।
बिहार ही नहीं बल्कि देश की सियासत में पप्पू यादव एक अलग नाम है। अपनी बेबाकी की वजह से दशकों से वे बिहार की राजनीति में खास पहचान रखते हैं। कभी राजद में रहे, कभी अपनी पार्टी (जाप) बनाई तो कभी निर्दलीय मैदान में रहे। लेकिन हमेशा ताकत के साथ ताल ठोकते रहे। पिछले लोकसभा के चुनाव में भी उन्होंने कांग्रेस के साथ होने की बात कही लेकिन कांग्रेस ने कभी उन्हें स्वीकारा ही नहीं। यह सच है कि कांग्रेस के साथ पप्पू का रिश्ता असमंजस भरा है।
कोसी और सीमांचल इलाके में पप्पू यादव का सीधा संपर्क है और सच कहा जाए तो यह उनका व्यक्तिगत जनाधार है। जातीय राजनीति से अलग उनकी पहचान है। आमलोगों के बीच उनकी छवि एक मददगार नेता की है। कोविड के समय दुनिया ने देखा कि पप्पू फील्ड में लगातार सक्रिय थे जब तमाम नेता घरों में बंद थे। पप्पू एंबुलेंस से आक्सीजन पहुंचाने में लगे थे। पटना में बाढ़ के समय भी पप्पू यादव का जमीनी और संवेदनशील चेहरा नजर आया। पप्पू की एेसी सक्रियता और एेसा अंदाज ही उन्हें बाकी नेताओं से अलग करता है।
पप्पू बेबाकी और आक्रामकता को ही अपनी क्वालिटी मानते हैं। आम जनता के बीच भी उनकी छवि यही है कि वे बिना लाग-लपेट के अपनी बात कहते हैं। अपनी बातों में वे सत्ता और विपक्ष दोनों को निशाने पर रखते हैं। जनता को उनका यही अंदाज पसंद भी आता है। राष्ट्रीय राजनीति में बेशक वे सीमित प्रभाव रखते हैं लेकिन बिहार और खासकर कोसी-सीमांचल में उनकी एक अलग पहचान है। बिहार की राजनीति में वे एक वैकल्पिक स्वर तो पेश करते हैं लेकिन संगठन के स्तर पर वे कमजोर दिखते हैं। पार्टी उन्हीं के कंधों पर दिखती है। पार्टी में पप्पू के बाद कोई सेकंड लाइन नजर नहीं आता है। किसी पार्टी में वे टिक नहीं सके। राजद से अलग होकर पप्पू ने पार्टी तो बनाई लेकिन संगठन नहीं खड़ा कर सके। सच यही है कि कांग्रेस के साथ उनका समीकरण सिर्फ बयानों तक ही सीमित रहा है।
बिहार में कांग्रेस खुद ही अपने पैरों पर नहीं है। कांग्रेस की चुप्पी के पीछे का यही कारण भी है। महागठबंधन में राजद की छत्रछाया में ही कांग्रेस वर्तमान में अपना अस्तित्व देख रही है। पप्पू के अंदाज को लेकर तेजस्वी से लेकर लालू तक असहज हैं। कई बार पप्पू ने राजद और लालू पुत्र तेजस्वी पर भी खुलकर हमला किया है। एेसी स्थिति में कांग्रेस को कार्डिनेशन बिगड़ने का खतरा लगता है और वह चुप्पी को ही हितकर मानती है।
अगर पप्पू किसी बड़े दल के साथ तालमेल बना पाए तो सीमांचल में असर डाल सकते हैं। लेकिन संगठन खड़ा किए बिना वे अपनी ताकत को सीटों में बदल पाएंगे, इसमें संदेह है।