‘दल’ व ‘निर्दल जी’ का रहस्यमयी संगम: कहलगांव की गलियों में सियासी साज़िश का बजने लगा साज़

प्रदीप विद्रोही, भागलपुर

राजनीति की बिसात पर चाले अब शतरंज से ज़्यादा सस्पेंस से भरी होती जा रही हैं। कहलगांव विधानसभा सीट जो जिले की सबसे हॉट सीट मानी जा रही है अब एक नए राजनीतिक रहस्य की पृष्ठभूमि बन चुकी है। जहां आमतौर पर घोषणाएं मंच से होती हैं, वहीं इस बार मंथन गलियों में हो रहा है, एक खास हवेली में हो रहा है। वो भी पूरी गोपनीयता के साथ… जात-जमात की दुहाई के बलबूते। मालूम हो कि कहलगांव सीट पर फ़िलहाल बहुकोणीय मुकाबला दिख रहा है। चुनावी मैदान में मुख्य चेहरे के रूप में एनडीए समर्थित शुभानंद मुकेश (जदयू), रजनीश यादव (आरजेडी), प्रवीण सिंह कुशवाहा (कांग्रेस), मंजर आलम (जन सुराज) और निर्दलीय पवन यादव हैं।

बुधवार की दोपहर, जब शहर धूप में सुस्ताने लगा था, कहलगांव की एक खास गली का एक घर अचानक राजनीतिक ऊर्जा से भर उठा। सड़कों पर ‘दल जी’ और ‘निर्दल जी’ के कई लग्जरी वाहन दिखे। ‘दल जी’ के अगुआ ‘पिताजी’ और ‘निर्दल जी’ स्वयं मौजूद थे। दोनों ओर से सिपाही दर्जन भर थे। लेकिन गुफ़्तगू दोनों ‘जी’ के बीच ही हुई। इन दिनों राजनीतिक रूप से सजग मकान में दो चेहरे मिले। जिसकी चर्चा सरे आम अंततः हो ही गई। एक दल का प्रतिनिधित्व करता हुआ, दूसरा ‘निर्दल जी’ की पहचान लिए। दोनों के बीच घंटों चली गुफ़्तगू ने आसपास की दीवारों तक को जिज्ञासा में डाल दिया।

चाय थी या चाल? बातचीत थी या ब्लूप्रिंट?

सूत्रों की मानें तो यह मुलाकात सिर्फ औपचारिकता नहीं थी। चर्चा इस बात की थी कि अगर ‘निर्दल जी’ मेरे पक्ष में चुनावी मैदान से पीछे हटते हैं, तो यह सीधे तौर पर ‘दल जी’ को मज़बूती देगा। बदले में उन्हें क्या मिलेगा – यह तो गली की दीवारें नहीं बतातीं, लेकिन राजनीतिक परंपराएं कुछ इशारे ज़रूर करती हैं।

कहलगांव का चुनावी गणित बदल सकता है!

विश्लेषकों का कहना है कि निर्दल जी की अपनी एक पकड़ है। उसके साथ भी समर्थकों की जमात है। अगर वे मैदान में बने रहते हैं, तो वोटों का बंटवारा तय है। लेकिन यदि वे ‘त्याग’ का भाव दिखाते हैं – चाहे किसी रणनीतिक समझौते के तहत तो मुकाबला सीधा और दिलचस्प हो जाएगा।

कबूतरों की उड़ान और कयासों की भनक

हालांकि इस मुलाकात का कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में ‘कयास के कबूतर’ लगातार उड़ान भर रहे हैं। कोई कहता है कि यह सिर्फ एक आरंभिक वार्ता थी, तो कोई दावा करता है कि डील लगभग तय हो चुकी है बस सही वक़्त का इंतज़ार है।

राजनीति की शतरंजी बिसात पर अगली चाल का इंतज़ार

अब सवाल यह है कि क्या गली में हुआ यह मिलन कहलगांव के राजनीतिक समीकरण को पूरी तरह बदल देगा? क्या ‘निर्दल जी’ वाकई पीछे हटेंगे? या यह सब सिर्फ एक भ्रमजाल है, जिससे विरोधियों को असमंजस में डाला जाए?

जवाब भविष्य के गर्भ में है, लेकिन एक बात तय है कि कहलगांव की हवा में अब सियासी साजिश की सुगबुगाहट तेज़ हो चुकी है। जीत के हर नुस्खे आज़माए जा रहे हैं, मतदान से पहले चुनावी गणित को दुरुस्त किया जा रहा है। जातीय बिखराव को एकत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। रिश्ते- नाते की दुहाई दी जा रही है। मान – मनौव्वल जैसे प्रयोग को धरती पर उतारा जा रहा है।