बिहार चुनाव 2025 : महागठबंधन में “डैमेज कंट्रोल” की हड़बड़ी, सुलह की कोशिशें जारी, फिर भी छह सीटों पर ‘दोस्ताना जंग’ तय

न्यूज स्कैन ब्यूरो, पटना
बिहार चुनाव के पहले चरण में अब कुछ ही दिन बचे हैं, लेकिन महागठबंधन की फिज़ा अभी भी पूरी तरह साफ नहीं है। लंबे खींचतान, टिकट विवाद और बगावतों के बीच अब सहयोगी दल डैमेज कंट्रोल में जुट गए हैं। राजद और कांग्रेस ने कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवारों को वापस लेकर यह जताने की कोशिश की है कि गठबंधन अब भी ज़िंदा है, लेकिन ज़मीन पर तस्वीर कुछ और ही कहती है। पहले चरण से पहले भले ही महागठबंधन में ‘सुलह’ का शोर है, लेकिन असलियत यह है कि मतभेद अब भी गहराए हुए हैं।
23 अक्टूबर तक तस्वीर साफ हो भी जाए, तो भी यह सवाल बरकरार रहेगा कि क्या बिहार में विपक्ष एक-दूसरे से लड़कर सत्ता तक पहुँच सकता है?

सुलह की कोशिश, लेकिन भरोसे की कमी
सोमवार को राजद और कांग्रेस ने कुछ सीटों से अपने प्रत्याशी वापस लिए। इससे यह संकेत तो मिला कि मतभेद पिघलने लगे हैं, मगर अब भी कम से कम छह सीटों पर ‘फ्रेंडली फाइट’ बनी हुई है। राजद ने 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि 100 सीटें सहयोगियों के लिए छोड़ी हैं। कांग्रेस 61 सीटों पर लड़ रही है और वाम दलों (भाकपा-माले, भाकपा, माकपा) को कुल 30 सीटें मिली हैं। फिर भी कई क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल नहीं बन पा रहा है।

सीटों पर तालमेल से पहले टूटता भरोसा
राजद ने कुटुम्बा सीट पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं उतारा। यह एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है। वहीं, लालगंज में कांग्रेस उम्मीदवार आदित्य कुमार ने नामांकन वापस लेकर RJD की प्रत्याशी शिवानी शुक्ला (बाहुबली मुन्ना शुक्ला की बेटी) के लिए रास्ता साफ किया। लेकिन दूसरी तरफ, VIP नेता सकलदेव बिंद ने तारापुर से नामांकन वापसी के बाद पार्टी से इस्तीफा दे दिया और सीधे NDA के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी का समर्थन कर दिया।

JMM का बाहर होना बड़ा झटका
महागठबंधन को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने सीट-बंटवारे पर असहमति के बाद बिहार चुनाव से खुद को अलग कर लिया।
झारखंड के मंत्री सुदिव्य कुमार ने कहा, “हमने गठबंधन धर्म निभाया, लेकिन RJD ने नहीं। कांग्रेस को मध्यस्थता करनी चाहिए थी, पर उसने भी कुछ नहीं किया।” इस बयान से यह साफ है कि महागठबंधन की दरारें अब सार्वजनिक हो चुकी हैं।

तेजस्वी को लेकर कांग्रेस की झिझक
महागठबंधन में अब तक मुख्यमंत्री चेहरे पर सहमति नहीं बन सकी है। राजद का दावा है कि तेजस्वी यादव ही चेहरा हैं, लेकिन कांग्रेस ने अब तक आधिकारिक समर्थन नहीं दिया है।
यानी विपक्षी एकता का दावा अब भी अधूरा है, ना साझा मंच है, ना साझा घोषणा-पत्र।

“सब ठीक हो जाएगा” वाला आत्मविश्वास
कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान का कहना है कि 23 अक्टूबर (नामांकन वापसी की अंतिम तिथि) तक सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। लेकिन अंदरखाने यह माना जा रहा है कि CPI अब भी तीन सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ प्रत्याशी बनाए रखे हुए है।

NDA में भी उथल-पुथल
सिर्फ विपक्ष ही नहीं, NDA भी पूरी तरह शांत नहीं है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह ने अपनी ही पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि “आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देना पार्टी की साख को नुकसान पहुँचा रहा है।” उन्होंने मतदाताओं से अपील की कि वे ऐसे उम्मीदवारों को वोट न दें जिनका नाम विवादों में रहा है, जैसे ओसामा शहाब (शहाबुद्दीन के बेटे) और वीणा देवी।

पप्पू यादव की सख्त टिप्पणी
पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ने भी राजद पर हमला करते हुए कहा कि पार्टी ने “गठबंधन धर्म की अनदेखी” की है और कांग्रेस को सलाह दी कि वह RJD से रिश्ता तोड़ ले।
पप्पू यादव का बयान उस नाराज़गी की झलक है जो सीमांचल और पूर्णिया क्षेत्र के सहयोगियों में अब भी बनी हुई है।