- भाजपा की सियासी गणित में घुला वीआईपी का तड़का, मुकाबला अब त्रिकोणीय
प्रदीप विद्रोही, भागलपुर
भागलपुर की राजनीति में इस बार दीपावली से पहले ही पटाखा फूटा और वो भी भागलपुर स्थित बिहपुर की धरती से। राजनीति के इस महायुद्ध में बड़ा उलटफेर तब हुआ, जब भागलपुर के सांसद अजय कुमार मंडल की भांजी
अर्पणा कुमारी ने जदयू की चादर उतारी और सीधे वीआईपी के पाले में जा कूदीं।
जैसे ही मुकेश सहनी ने अर्पणा को बिहपुर से टिकट थमाया, भाजपा के कुमार शैलेन्द्र की जीत की राह अचानक कांटों से भर गई। अब तक ‘सेफ सीट’ मानी जा रही बिहपुर की लड़ाई ने एक नया मोड़ ले लिया है। यहां जातीय गोलबंदी का खेल इस बार भौकाल करने को आतुर हो उठा है। खतरे की घंटी बज उठी है।
यहां जन सुराज के पवन चौधरी पहले से ही चुनावी समर में ताल ठोक रहे हैं। ऐसे में अब मुकाबला सीधे-सीधे त्रिकोणीय जंग में तब्दील हो गया है, जहां हर वोट की कीमत होगी… और हर गलती भारी!सवाल बड़ा है क्या अर्पणा, जदयू का परंपरागत वोट बैंक खींच पाएंगी या फिर वीआईपी का यह दांव बनेगा चालाकी से चला गया शॉट।
सिर्फ बिहपुर ही नहीं, कहलगांव और गोपालपुर में भी बगावत की आंच तेज है। कहलगांव में झारखंड सरकार के मंत्री संजय यादव के पुत्र राजद के रजनीश यादव के खिलाफ कांग्रेस के प्रवीण सिंह कुशवाहा की एंट्री से लड़ाई दिलचस्प हो गई है। उधर गोपालपुर में जदयू के घोषित प्रत्याशी बुलो मंडल को टक्कर देने यानी कब्र खोदने खुद गोपाल मंडल निर्दलीय मैदान में उतर आए हैं। ताजा घटनाक्रम में इधर भाजपा विधायक टिकट कटने के बाद आज कहलगांव में आयोजित आभार सभा में कार्यकर्ताओं के प्रेशर पर तथा कहलगांव विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। वैसे भागलपुर सदर सीट के दो बागी यानी भाजपाइ चेहरा मान मनोव्व्ल के बाद बैक टू पवेलियन हो चुके हैं।
जिले की राजनीति में अब कोई भी मुकाबला सीधा नहीं रहा। हर सीट पर समीकरण बदल रहे हैं और हर उम्मीदवार के पीछे एक कहानी है। बगावत, रणनीति, और उम्मीदों की। अब देखना है कि बिहपुर में कौन बनेगा ‘बदलाव का झंडाबरदार’ और किसका सपना रह जाएगा अधूरा?