- भागलपुर से जन सुराज ने दिया टिकट, पार्टी के भीतर ही मचा बवाल
- चुनावी माहौल में यह तय है कि अभयकांत झा को कोर्टरूम की नहीं, अब जनता की कठघरे में पेशी देनी होगी।
मदन, भागलपुर
बिहार विधानसभा चुनाव के सत्ता संग्राम में भागलपुर सीट से नया नाम उभर कर सामने आया है—वरिष्ठ अधिवक्ता अभयकांत झा। जन सुराज पार्टी ने उन्हें भागलपुर विधानसभा से अपना प्रत्याशी घोषित किया है। लेकिन टिकट की घोषणा के साथ ही पार्टी के भीतर असंतोष और बगावती सुर तेज़ हो गए हैं।
जन सुराज से जुड़े कार्यकर्ता और समर्थक सोशल मीडिया पर खुलकर सवाल उठा रहे हैं।
कभी जन सुराज से जुड़े रहे दीपक उपाध्याय ने फेसबुक पर लिखा है कि भागलपुर से जन सुराज जिसको टिकट देने जा रहा है, वह साबित करता है कि पार्टी जीतने के लिए नहीं, बल्कि किसी को जिताने या हराने के लिए मैदान में उतरी है। जिस व्यक्ति का न राजनीतिक वजूद है और न सामाजिक स्वीकार्यता, उसको टिकट देना जन सुराज नहीं, ‘छल सुराज’ का नमूना है।
इसी कड़ी में अधिवक्ता राजीव कुमार सिंह ने भी तीखा तंज कसते हुए लिखा —“भागलपुर विधानसभा में जिसको राजनीति का ‘र’ तक नहीं पता, उसी को जन सुराज का टिकट मिल गया!”
वहीं अंकित कुमार का कहना है —“वरिष्ठ अधिवक्ता जरूर हैं, लेकिन समाज या जनहित के लिए कभी वरिष्ठ नहीं रहे। कोई सामाजिक उपलब्धि नहीं, कोई जनसेवा का रिकॉर्ड नहीं। ऐसे में जन सुराज का यह निर्णय सवालों के घेरे में है।”
अब उनके पेशेवर जीवन पर भी उठ रहे सवाल
सोशल मीडिया पर कई लोग यहां तक लिख रहे हैं कि “अभयकांत झा ने आज तक बिना फीस के कोई केस नहीं लड़ा, और भारी-भरकम फीस लेने के बावजूद अधिकांश पीड़ितों को न्याय नहीं मिला।” अब जनता पूछ रही है — जब अदालतों में न्याय न दिला सके, तो जनता की अदालत में क्या न्याय करेंगे? यह लाजिमी भी है कि जब कोई व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में आता है तो उनका पेशेवर जीवन का भी आकलन किया जाने लगता है।
कार्यकर्ताओं ने कहा-ऊपर से थोपे गए बेकार उम्मीदवार
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अभयकांत झा की सक्रियता जन सुराज में अब तक लगभग न के बराबर रही है। टिकट वितरण में उन्हें “ऊपर से थोपे गए उम्मीदवार” के रूप में देखा जा रहा है। स्थानीय कार्यकर्ताओं में यह नाराज़गी साफ़ झलक रही है कि “पार्टी ने हमारे सिर पर बेकार उम्मीदवार थोप दिया।”
यह कदम केवल ब्राह्मण वोटों में सेंध लगाने के लिए उठाया गया?
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि “यह कदम केवल ब्राह्मण वोटों में सेंध लगाने और भाजपा का वोट काटने की रणनीति का हिस्सा लगता है। मगर सवाल यह है कि क्या सिर्फ़ जातीय समीकरण के भरोसे जन सुराज भागलपुर में पैर जमा पाएगा?”
अब देखना दिलचस्प होगा कि भागलपुर की जनता वरिष्ठ अधिवक्ता अभयकांत झा को स्वीकार करती है या जनता की अदालत उन्हें सिरे से खारिज कर देती है।