सीट बंटवारे के मोर्चे पर बढ़ी तनातनी, लोजपा (रामविलास) के नेता का तेवर एनडीए के लिए चुनौती बना
न्यूज़ स्कैन ब्यूरो | पटना
बिहार की राजनीति में एक सोशल मीडिया पोस्ट ने आज हलचल मचा दी है। लोजपा (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने अपने पिता को याद करते हुए फेसबुक पर जो पंक्तियाँ लिखीं — “पापा कहते थे, जुर्म मत करो, जुर्म मत सहो। जीना है तो मरना सीखो, कदम-कदम पर लड़ना सीखो” — उसे केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि राजनीतिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, यह पोस्ट सीधे-सीधे एनडीए को “आंख दिखाने” वाला संदेश है कि यदि सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं, तो चिराग अलग राह भी चुन सकते हैं।
सीट बंटवारे का पेच और चिराग की सख्त शर्तें
चिराग पासवान लंबे समय से बिहार विधानसभा चुनाव में कम से कम 40 सीटों की मांग पर अड़े हैं। एनडीए के भीतर यही सबसे बड़ा पेच बन गया है। उनकी पार्टी के दो प्रमुख चेहरे — जमुई के सांसद अरुण भारती और खगड़िया के सांसद राजेश वर्मा — पहले ही सीट वितरण का फार्मूला जारी कर चुके हैं और स्पष्ट कर दिया है कि लोजपा इस बार कम सीटों पर समझौता नहीं करेगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एनडीए के भीतर सीटों की खींचतान, खासकर लोजपा की मांगों को लेकर, गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर रही है।
पिता रामविलास बनाम पुत्र चिराग — दो पीढ़ियों की राजनीति
यदि पिता रामविलास पासवान और पुत्र चिराग पासवान की राजनीति की तुलना की जाए, तो दोनों की शैली में बड़ा फर्क नज़र आता है। रामविलास एक “मध्य मार्गीय” नेता थे, जो हर राजनीतिक परिस्थिति में रास्ता निकाल लेते थे। वहीं चिराग टकराव की राजनीति में ज्यादा यकीन रखते हैं। उनका अंदाज़ स्पष्ट है — या तो बराबरी की हिस्सेदारी, या फिर विपक्षी भूमिका। 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने खुलकर नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला था, जिसके परिणामस्वरूप जेडीयू को नुकसान उठाना पड़ा था। अब एक बार फिर वही राजनीतिक स्क्रिप्ट दोहराए जाने की आशंका है।

क्या एनडीए के लिए चेतावनी है यह पोस्ट?
विश्लेषकों का मानना है कि चिराग की यह पोस्ट केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक है। यह एनडीए के लिए सीधा संदेश है — “सम्मान दो, तभी साथ निभेगा।” चिराग की लोकप्रियता सिर्फ एनडीए तक सीमित नहीं है; वे अन्य दलों में भी स्वीकार्य चेहरा माने जाते हैं। यही वजह है कि जनसुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर भी उन्हें अपने साथ जोड़ने की कोशिश में हैं। हालांकि, यदि चिराग अलग राह चुनते हैं तो यह उनके लिए भी जोखिम भरा कदम होगा। लोजपा का पासवान वोट बैंक लगभग 5-6 प्रतिशत है, और अकेले लड़ने पर इसके बिखराव का खतरा भी बना रहेगा। फिर भी, उनके समर्थक उन्हें “भविष्य का सीएम फेस” बताकर मैदान में बनाए रखना चाहते हैं।