न्यूज स्कैन ब्यूरो, किशनगंज
आगामी बिहार विधानसभा चुनावों की सरगर्मियां चरम पर पहुंच गई हैं, खासकर सीमांचल क्षेत्र में जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। किशनगंज जिले की बहादुरगंज विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने अपना पारंपरिक दावा मजबूती से ठोक दिया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता मंजर हसनैन उर्फ कलेक्टर ने बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु से पटना में मुलाकात कर इस सीट पर टिकट की मांग की। इस अहम बैठक में जिला कांग्रेस अध्यक्ष इमाम अली उर्फ चिंटू भी मौजूद थे।
मंजर हसनैन ने बैठक में बहादुरगंज में अपनी मजबूत पकड़ और पार्टी के संगठनात्मक कार्यों में अपनी भूमिका पर जोर दिया। बहादुरगंज, जो किशनगंज जिले का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लंबे समय से कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां 40% से अधिक मुस्लिम आबादी होने के कारण यह सीट विपक्षी दलों के लिए रणनीतिक महत्व की है। जिला अध्यक्ष चिंटू ने बताया, “पार्टी बूथ स्तर पर तैयारियां तेज कर रही है। कांग्रेस का आधार यहां मजबूत है और हम इस सीट को भारी मतों से जीतेंगे।” चिंटू ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा, “हमारी टीम पूरी तरह तैयार है और जल्द ही अन्य दावों पर भी फैसला होगा।”
किशनगंज जिला, जिसे ‘चिकन नेक’ के रूप में जाना जाता है, में कुल 68% मुस्लिम आबादी है। इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले की पूरी संभावना है, जहां एनडीए, RJD और अन्य दल भी दावेदारी कर सकते हैं। स्थानीय मुद्दे जैसे बाढ़, बेरोजगारी और सीमांचल की खराब कनेक्टिविटी गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं। जातिगत समीकरण में मुस्लिम (40%), यादव (15%) और ईबीसी वोट निर्णायक होंगे।
2020 की हार से सबक: AIMIM का RJD में विलय
2020 के विधानसभा चुनाव में बहादुरगंज पर कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी के उम्मीदवार मोहम्मद तौसीफ आलम को मात्र 25 हजार वोट मिले, जबकि AIMIM के मोहम्मद अनजार नईमी ने विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के लखन लाल पंडित को 45,215 वोटों से हराया। कुल 2.83 लाख मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में वोटिंग 59.2% रही। किशनगंज की चार सीटों (बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज, कोचाधामन) में बहादुरगंज पर कांग्रेस का पुराना दावा रहा, लेकिन गठबंधन की सीट बंटवारे की भूल ने इसे हाथ से निकाल दिया।
हालांकि, जून 2022 में नईमी समेत AIMIM के चार
विधायकों ने RJD का दामन थाम लिया। लालू प्रसाद यादव की मौजूदगी में हुए इस विलय से RJD बिहार विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी बनी। बहादुरगंज के अलावा कोचाधामन, बैसी और जोकीहाट के विधायक भी RJD में शामिल हुए। नईमी ने कहा था, “RJD के साथ मिलकर अल्पसंख्यक हितों की बेहतर रक्षा करेंगे।” इस कदम ने सीमांचल में RJD की पकड़ मजबूत की, जहां 2020 में AIMIM ने महागठबंधन के वोट काटे थे। अब केवल अमौर सीट पर AIMIM का विधायक बचा है।
महागठबंधन में सीट बंटवारे की जंग
2025 चुनाव से पहले महागठबंधन में खींचतान तेज हो गई है। कांग्रेस किशनगंज जिले की दो सीटें (किशनगंज और बहादुरगंज) चाहती है। जिला कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “2020 तक हम यहां लड़ते थे। RJD को हमारा हक देना होगा।” वहीं, RJD के प्रवक्ता ने साफ लिहाजा किया, “नईमी हमारे विधायक हैं, सीट हमारी रहेगी।” VIP भी इस सीट पर दावा ठोंक रही है।
बहादुरगंज मुस्लिम बहुल सीट है, जहां कांग्रेस ने ऐतिहासिक रूप से 10 बार जीत हासिल की है। केवल तीन गैर-मुस्लिम उम्मीदवार ही यहां से चुने गए हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मोहम्मद जावेद ने किशनगंज सीट जीती, जो इस क्षेत्र में पार्टी की मजबूती दिखाती है। लेकिन RJD का 2022 का विलय फॉर्मूला फिर कामयाब रहा तो महागठबंधन की लहर सीमांचल में छा सकती है, वरना कांग्रेस की नाराजगी गठबंधन को कमजोर कर सकती है।
मंजर हसनैन जैसे स्थानीय सक्रिय नेताओं की दावेदारी से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह है। चुनाव आयोग की तारीखों का ऐलान होते ही यहां प्रचार का दौर शुरू हो जाएगा। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अपनी पुरानी जमीन वापस ले पाएगी या RJD का विलय रणनीति फिर बाजी मार लेगी? बहादुरगंज की नजरें इसी सवाल पर टिकी हैं।