बच्चों को झुंझलाने दीजिए विशेषज्ञ बताते हैं क्यों यह जरूरी है
ततहीर कौसर, पटना
बच्चों को हमेशा खुश रखना और रोने से रोकना हर माता-पिता का पहला लक्ष्य होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर बच्चा कभी-कभी नाराज हो, रोए या निराश हो तो उसमें कुछ अच्छा भी छिपा हो सकता है? हालिया मनोवैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, बच्चों को नियंत्रित तरीके से निराशा और असफलता का सामना करने देना उनके मानसिक विकास के लिए आवश्यक है।इसलिए, थोड़ी सी झुंझलाहट, थोड़ी निराशा यवो सीढ़ियां हैं जो बच्चों को आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की ओर ले जाती हैं।
रोना और चिढ़ना बच्चे की भाषा है।
शिशु और छोटे बच्चे जब किसी चीज को नहीं समझ पाते या पाना चाहते हैं, तो उनका रोना या नाराज होना स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है। यह उनके लिए अपनी भावनाएं व्यक्त करने का एकमात्र तरीका होता है।
सामाजिक दबाव की वजह से माता-पिता अक्सर हर प्रयास करते हैं कि बच्चा न रोए, न चिढ़े। विशेषज्ञ कहते हैं कि थोड़ी बहुत निराशा बच्चों के विकास के लिए लाभदायक है। एसएम कॉलेज भागलपुर के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर मिथलेश तिवारी के अनुसार जब माता-पिता हर परेशानी का हल तुरंत बच्चों को दे देते हैं, तो वे संघर्ष करना नहीं सीखते। उनका मानना है कि बच्चों को उचित चुनौतियों का सामना करने देना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बनें।

सिखाएं इंतजार, ताकि वह भविष्य में खुद को संभाल सके :
बच्चों में तुरंत मिलने वाले सुख को रोककर, भविष्य में मिलने वाले बेहतर लाभ का इंतज़ार करना सिखाना जरूरी है। इसे Delay of Gratification कहते हैं।
एक बच्चा अगर यह तय करता है कि वह अभी चॉकलेट नहीं खाएगा, ताकि बाद में दो चॉकलेट मिलें तो यह delay of gratification है। पटना की मनोवैज्ञानिक अतिया फातमा कहती हैं ये गुण बच्चों के विकास केलिए महत्वपूर्ण है। इससे धैर्य बढ़ता है,आत्मनियंत्रण मजबूत होता है और लक्ष्य प्राप्ति की क्षमता भी विकसित होती है। मनोवैज्ञानिक मिथलेश तिवारी कहते हैं मोबाइल और इंटरनेट की वजह से बच्चों में धैर्य की कमी हो रही है। इसमें आपको तुंरत खुशी की अनुभूति होती है। जब कभी बच्चों को मनपसंद चीजों के लिए इंतजार करना पड़ता है तो वो परेशान होते हैं। इसलिए उन्हें बचपन से ही इंतजार करना सिखाना जरूरी है।
क्या होती है संतुलित निराशा
प्रसिद्ध मनोविश्लेषक हेंज कोहट ने संतुलित निराशा की संकल्पना दी थी। इसका अर्थ है इतनी निराशा जो बच्चे को न तोड़ दे, लेकिन उसे सोचने, प्रयास करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा दे। यह वही स्थिति होती है जब बच्चा किसी काम में अटकता है और अभिभावक उसे पूरा हल देने की बजाय सिर्फ थोड़ा मार्गदर्शन करते हैं। इससे बच्चा खुद समस्या हल करना सीखता है।

बच्चों को सीखने दें
छोटे बच्चे को खिलौनों से खुद खेलने दें, उन्हें एक्सप्लोर करने दें। बड़े बच्चे को होमवर्क खुद करने दें। उनका केवल जरूरत होने पर मार्गदर्शन दें। किशोर को स्कूल या दोस्ती से जुड़ी परेशानियां खुद हल करने का अवसर दें । इन छोटे अनुभवों से ही आत्मविश्वास पैदा होता है।
क्या करें, क्या न करें
- बच्चे को असफलता का अनुभव होने दें । हर बार तुरंत मदद देने की आदत न डालें
- केवल मार्गदर्शन करें, समस्या का पूरा समाधान खुद दें
- सकारात्मक प्रतिक्रिया दें , निराशा को तुरंत ठीक करने की कोशिश करें।