खगड़िया: परबत्ता के कोलवारा गांव में लगता है बिहूला – विषहरी मेला,भक्ति भाव से पूजा करने पहुंच रहे भक्तगण

न्यूज स्कैन ब्यूरो। परबत्ता(खगड़िया)

प्रखंड के कोलवारा गांव में बिहला विषहरी मेला चल रहा है। अंग क्षेत्र की लोकगाथा पर आधारित बिहुला विषहरी पूजा को लेकर उत्साह का माहौल देखा जा रहा है। कोलवारा पंचायत के वार्ड नंबर 18 में स्थापित विषहरी मंदिर बिषहरी माता के भक्तों के बीच श्रद्धा का केन्द्र है। हर वर्ष बिहुला विषहरी पूजा के अवसर पर हजारों की संख्या में लोग यहां उपस्थित होते हैं।ग्रामीण अनरूद्ध दास,सुदीन दास,जयप्रकाश दास, सीताराम दास,मुन्नी लाल दास,मनीष कुमार,ज्ञानी दास आदि ने बताया कि विगत छः दशकों से बिहुला विषहरी की पूजा श्रद्धा व भक्ति से चलती आ रही है।इस पूजन के साथ साथ मेला के दौरान रात में सभी उम्र तथा वर्ग के स्थानीय कलाकारों के द्वारा बाला बिहुला विषहरी पर आधारित कथा पर नृत्य के साथ साथ झांकी का मंचन किया जाता है। इस परंपरा को स्थानीय लोग निभाते चले आ रहे हैं। यहां ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर का निर्माण कराया गया है।इस मंदिर में प्रत्येक वर्ष श्रद्धा भक्ति के साथ बाला बिहुला विषहरी की पूजा किया जाता है। विषहरी पूजा समिति कोलवारा के सदस्यों ने बताया कि बिषहरी मंदिर कोलवारा में मूर्तिकार भागलपुर अमरी विशनपुर निवासी छीतन दास ने देवी की प्रतिमा को अंतिम रूप दिया है। ग्रामीणों की मानें तो इस पूजा में माता विषहरी पांच बहनें जया विषहरी, पदुम कुमारी,दोतिला भवानी,मैना विषहरी, देवी विषहरी,सती बिहुला,बाला लखेंद्र, चंद्रधर सौदागर आदि की प्रतिमा बनाई जाती है। इस पूजन में खगड़िया ही नहीं अन्य जिलों से सैकड़ोंभक्तजन यहां पहुंचते हैं। बिहुला विषहरी की कहानी भागलपुर चंपानगर के तत्कालीन बड़े व्यावसायी और शिवभक्त चांदो सौदागर से शुरू होती है।विषहरी शिव की पुत्री कही जाती हैं।लेकिन उनकी पूजा नहीं होती थी।विषहरी ने सौदागर पर दबाव बनाया परंतु वह शिव के अलावा किसी और की पूजा को तैयार नहीं हुए।आक्रोशित विषहरी ने उनके पूरे खानदान का विनाश शुरू कर दिया।छोटे बेटे बाला लखेन्द्र की शादी उज्जैन नगरी के बिहुला से हुई थी।उनके लिए सौदागर ने बांस का एक घर बनाया ताकि उसमें एक भी छिद्र न रहे।यह घर अब भी चंपानगर में मौजूद है।सुहागरात के दिन ही विषहरी के भेजे दूत नाग ने रात्रि 12 बजे सिंह नक्षत्र के प्रवेश करते ही बाला लखेंद्र को डँस लिया।जिससे उनकी मृत्यु हो गई।बिहुला सती नारी थी, इसलिए उसने हार नहीं मानी।सती बिहुला पति के शव को केले के थम से बने नाव में लेकर गंगा के रास्ते स्वर्गलोक तक चली गई और पति का प्राण वापस कर लाई।तब सौदागर भी विषहरी की पूजा के लिए राजी हुए।लेकिन बाएं हाथ से। तब से आज तक विषहरी पूजा में बाएं हाथ से ही होती है। इस परिक्षेत्र में बिहुला विषहरी की पूजा नाग पंचमी से शुरू होती है और लगातार एक माह तक चलती है।ग्रामीण अनरूद्ध दास,संजय कुमार ने बताया कि हर साल एक ही तिथि 16 अगस्त की देर रात्रि विषहरी व सती बिहुला की पूजा प्रारंभ होती है।मध्य रात्रि में सिंह नक्षत्र का प्रवेश होता है तथा पिंडी पर प्रतिमा कों स्थापित किया जाता है।प्रति वर्ष 17- 18 अगस्त को लोग डलिया चढ़ाने के साथ दूध व लावा का भोग लगाते हैं।भगत की पूजा समाप्त हो जाती है।दोपहर में मनौन भजन कार्यक्रम होता है और 19 अगस्त को शाम को धूमधाम से प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।दो तरह से पूजा होती है।एक सामान्य रूप से प्रतिमा स्थापित करके पूजा की जाती है।वहीं भगत पूजा का कार्यक्रम होता है तथा मंजूषा स्थापित किया जाता है ‌‌।