प्रदीप विद्रोही, भागलपुर
15 अगस्त की संध्या। दिल्ली के संसद भवन परिसर में जब ‘भारत गौरव सम्मान 2025’ की घोषणा हुई, तो उस लम्हे ने सिर्फ एक कलाकार को नहीं, बल्कि पूरी बिहार की माटी को सम्मानित कर दिया।
अंतर्राष्ट्रीय सैंड आर्टिस्ट मधुरेंद्र कुमार, जिन्होंने अपनी उंगलियों से रेत पर इतिहास लिखा है, उन्हें इस प्रतिष्ठित राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया। यह केवल एक पुरस्कार नहीं, भारतीय कला की आत्मा को प्रणाम था।
जहां रेत बोलती है, वहां मधुरेंद्र की पहचान होती है
मधुरेंद्र ने साबित कर दिया कि कला को मंच की नहीं, मंशा की ज़रूरत होती है। उन्होंने बालू पर ऐसी कलाकृतियाँ उकेरीं जो सिर्फ दृश्य नहीं, विचार बनकर लोगों के मन में बस गईं।
‘बेटी बचाओ’, ‘पर्यावरण संरक्षण’, ‘जल-जीवन-हरियाली’, ‘समाज सुधार यात्रा’ जैसे जन-आंदोलनों को उन्होंने अपनी रेत की लकीरों से आवाज़ दी।
सम्मान का सिलसिला, संघर्ष की पृष्ठभूमि
2012 में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा सम्मानित।
2019–20 में बिहार चुनाव आयोग के ब्रांड एंबेसडर।
2021–22 में स्वच्छ सर्वेक्षण अभियान से जुड़े।
2023 में ‘बिहार की महान हस्तियां’ नामक पुस्तक में स्थान।
और अब—लंदन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड 2025 में नाम दर्ज।
कला से प्रेरणा की ओर
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, नीति आयोग और ISO द्वारा प्रमाणित नमस्कार ग्रुप के माध्यम से दीपक सारस्वत और रितिका शर्मा ने उन्हें स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्र, मैडल और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया।
यह सम्मान न केवल मधुरेंद्र का, बल्कि उस हर युवा का है जो छोटे शहर से निकलकर बड़े सपने देखता है, और अपने हुनर से उन्हें साकार करता है।
बधाइयों की बौछार
संसद परिसर में मौजूद कलाप्रेमी, राजनीतिज्ञ और देशभर से आये बुद्धिजीवियों ने मधुरेंद्र को बधाई देते हुए कहा— “यह सम्मान कला का है, संघर्ष का है, और उस मिट्टी का है जहां से मधुरेंद्र उभरे।”
बिहार की रेत से निकला एक सितारा
मधुरेंद्र की यह उपलब्धि केवल एक व्यक्तिगत जीत नहीं, बिहार की सांस्कृतिक विरासत का पुनर्जागरण है। वे आज ‘भारत गौरव’ हैं, कल लाखों युवाओं के ‘प्रेरणास्तंभ’ होंगे।