सीमांचल में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से लाखों नाम कटने से बढ़ी राजनीतिक चुनौती : NDA और INDIA गठबंधन की रणनीति पर असर

न्यूज स्कैन ब्यूरो, पटना
एसआईआर की रिपोर्ट जारी होने के बाद सीमांचल की राजनीति गरम है। बिहार के सीमांचल के चार जिले यानी अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार से ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में 7.6 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं। इस फैसले से राजनीतिक हलकों में हलचल तेज है। आगामी विधानसभा चुनाव में दोनों प्रमुख गठबंधन यानी इंडिया और एनडीए के लिए नई तरह की चुनौतियां सामने हैं।

सीमांचल क्षेत्र बिहार की राजनीति में “किंगमेकर” की भूमिका निभाता है। कुल 24 विधानसभा सीटों के साथ यह एक संवेदनशील और जातीय-सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यहाँ मुस्लिम आबादी की तादाद अधिक है। यही 2020 के चुनावों में AIMIM की बढ़ती पकड़ का प्रमुख कारण बनी। 2020 में AIMIM ने 5 सीटें जीतकर यह दिखाया कि सीमांचल पर उनकी मौजूदगी चुनावी समीकरणों को बदल सकती है। परन्तु अब 2025 के चुनावों में जब लाखों नाम ड्राफ्ट लिस्ट से कटे हैं, तो सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह कटौती अल्पसंख्यक वोटरों को निशाना बनाने की रणनीति है या अवैध निवासियों के खिलाफ कार्रवाई का हिस्सा है।

राजनीतिक गठबंधनों की रणनीति में बदलाव:
NDA इस क्षेत्र को “सुरक्षित और घुसपैठमुक्त” दिखाने पर जोर दे रही है और दूसरा पक्ष कट्टरपंथी विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर वोटरों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश में है। एनडीए वोटर लिस्ट संशोधन को कानूनी प्रक्रिया बताकर समर्थन कर रही है। INDIA ब्लॉक इस कटौती को अल्पसंख्यकों के वोटर अधिकारों पर हमला मानता है और “नाम कटवाओ नहीं, जुड़वाओ” अभियान चला रहा है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की सीमांचल यात्रा इस अभियान का हिस्सा है। असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM सीमांचल की राजनीति में एक प्रभावशाली खिलाड़ी बन चुकी है। कटे नामों में मुस्लिम मतदाताओं की अधिकता इस पार्टी के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है, खासकर तब जब राजनीतिक ध्रुवीकरण चरम पर हो। इस इलाके में पप्पू यादव का भी मजबूत प्रभाव है। लेकिन सारी बातें इस बात पर निर्भर है कि गठबंधन की रणनीति आगे क्या रहती है और पप्पू को कांग्रेस कितना महत्व देती है और तेजस्वी कितना स्वीकार कर पाते हैं।