कल तक नीतीश को ‘लानत’, अब कर रहे ‘तारीफ’ : फिर बदले-बदले नजर आ रहे ‘हनुमान’

सबसे बड़ा सवाल कि आखिर चिराग पासवान की बदलती भाषा में क्या राजनीति छिपी है? जवाब बस एक, वे सम्मानजनक हिस्सेदारी चाहते हैं

न्यूज़ स्कैन डेस्क, पटना

बिहार में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले लोजपा (रामविलास) प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के सुर अचानक बदल गए हैं। जो चिराग दो दिन पहले तक नीतीश सरकार को कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर घेर रहे थे। एक बार फिर रंग बदला है और कहने लगे हैं, “अगले मुख्यमंत्री भी नीतीश कुमार ही होंगे।” इस बयान ने एनडीए खेमे के भीतर हलचल तो मचाई ही है, राजनीतिक समीकरणों पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

‘अपराधियों के सामने आत्मसमर्पण’ से ‘फिर से मुख्यमंत्री’ तक
कुछ दिन पहले ही चिराग पासवान ने कहा था कि उन्हें अफसोस है कि, वे उस सरकार का हिस्सा हैं जहां “अपराधियों के सामने प्रशासन ने आत्मसमर्पण कर दिया है”। इस बयान को गठबंधन के भीतर नाराज़गी और आत्ममंथन की तरह देखा गया था। लेकिन सोमवार को उन्होंने कहा, “विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।” यह बयान इसीलिए भी अलग तरीके से देखा जाना चाहिए कि उनके करीबी लोगों के ये बयान पूर्व में आ चुके हैं कि चिराग के समर्थक चाहते हैं कि वे बिहार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। चिराग की चाहत यही है कि आलोचना के जरिए वे अपनी जगह बनाए रखें और समर्थन के जरिए सत्ता में अपनी मौजूदगी भी ताकतवर रखें। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चिराग पासवान अपने बयानों से जो गति और गहराई पैदा कर रहे हैं, वह महज़ भावनात्मक प्रतिक्रियाएं नहीं, बल्कि एक सुनियोजित इमेज बिल्डिंग और डील पोजिशनिंग का हिस्सा है। वे न तो पूरी तरह गठबंधन से बाहर जाने की स्थिति में हैं, और न ही आंख मूंदकर समर्थन देने वाला दिखना चाहते हैं। वे भविष्य में खुद को “दलित युवा नेता के रूप में निर्णायक शक्ति” के तौर पर पेश करने की कोशिश में हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस ‘यू-टर्न’ को महज़ व्यक्तिगत विचार नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति माना जाना चाहिए। इस बयान की पृष्ठभूमि में एनडीए में सीटों की सौदेबाजी ही है। चिराग चाहते हैं कि दबाव भी बनाया जाता रहे और रिश्ता भी नहीं तोड़ना है। ये दबाव बस सीट शेयरिंग में बड़ी हिस्सेदारी के लिए है। वे खुद को मुख्यमंत्री पद के लिए अघोषित दावेदार नहीं बल्कि एक ‘संवेदनशील समर्थक’ के तौर पर दिखाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि युवाओं, शहरी मतदाताओं और दलित वोट बैंक में उनकी अपनी अलग पहचान कायम रहे। चिराग चाहते हैं कि वे NDA के ‘भरोसेमंद आलोचक’ की भूमिका निभाएं। एक एेसा घटक जो गलती पर सवाल भी उठाए और साथ भी बनाए रखे।